संसद के आगामी शीतकालीन सत्र को सुचारू और बिना किसी बड़े राजनीतिक टकराव के संचालित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 30 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाने का प्रस्ताव भेजा है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सभी दलों के फ्लोर लीडर्स को पत्र भेजकर उनसे इस बैठक में भाग लेने का आग्रह किया है। सरकार का इरादा है कि सत्र के दौरान उठने वाले गंभीर, विवादित या संवेदनशील मुद्दों पर पहले से चर्चा हो सके ताकि सत्र की कार्यवाही बाधित न हो और सदनों का समय रचनात्मक ढंग से उपयोग किया जा सके। शीत सत्र 1 दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलने वाला है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विधेयक, आर्थिक प्रस्ताव, मंत्रालयों की रिपोर्ट और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर चर्चा प्रस्तावित है।
विपक्ष पहले ही कुछ मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में है, जिनमें चुनाव सुधार, हालिया राजनीतिक घटनाक्रम, विदेश नीति से जुड़े प्रश्न और संस्थागत स्वतंत्रता पर उठे विवाद शामिल हो सकते हैं। ऐसे में सरकार का प्रयास है कि किसी भी संभावित गतिरोध, नारेबाजी या सदन में बाधा से पहले सभी दलों से संवाद स्थापित किया जाए और चर्चा का न्यूनतम साझा रास्ता निकाला जा सके। सूत्रों के अनुसार, कुछ विपक्षी दल भी चाहते हैं कि सत्र से पहले समन्वय बैठकों में मुद्दों को तर्कसंगत रूप से रखा जाए ताकि सदन में अनावश्यक हंगामे के बजाय प्रभावी बहस हो।
सर्वदलीय बैठक में सरकार सत्र के दौरान पेश किए जाने वाले प्रमुख विधेयकों और संभावित चर्चाओं की रूपरेखा रखेगी। यह भी संभावना है कि विपक्ष अपने प्राथमिकता वाले मुद्दों—मूल्य वृद्धि, रोजगार, हालिया सुरक्षा घटनाओं और कुछ राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियों—को विस्तृत रूप में उठाए। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि शीतकालीन सत्र राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय में हो रहा है, इसलिए दोनों पक्षों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहेगी। यदि बैठक में सहमति बनती है तो सत्र अपेक्षाकृत शांत और उत्पादक हो सकता है, जबकि असहमति की स्थिति में टकराव और गतिरोध की आशंका बनी रहेगी। इसीलिए सरकार ने सत्र की शुरुआत से पहले ही बातचीत का रास्ता चुना है और उम्मीद की जा रही है कि विपक्ष भी इस संवाद को समान गंभीरता से लेगा।













