पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पार्टी अब बड़े नेताओं की गतिविधियों या ऊपरी स्तर की जोड़तोड़ पर निर्भर रहने के बजाय संगठन के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने में जुट गई है। भाजपा का ध्यान खासतौर पर उन स्थानीय कार्यकर्ताओं पर है जो तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) या अन्य दलों से नाराज़ चल रहे हैं। पार्टी इन्हें अपने साथ जोड़कर बूथ-स्तर की एक सशक्त टीम तैयार करना चाहती है, क्योंकि भाजपा का मानना है कि बंगाल जैसे राज्य में चुनावी सफलता का असली आधार वही कार्यकर्ता होते हैं जो रोज़मर्रा में जनता के बीच सक्रिय रहते हैं। इसी कारण पार्टी ने ‘‘पालाबदल’’ यानी विपक्षी दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं के भाजपा में शामिल होने की संभावनाओं पर कड़ी नजरें रखी हैं और ऐसे लोगों तक पहुँचने के लिए विशेष टीमें गठित कर दी गई हैं।
भाजपा ने राज्य को कई ज़ोन में बाँटकर वार-रूम और क्षेत्रवार मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार किया है। इन वार-रूमों से रिपोर्टिंग, रणनीति और ग्राउंड-लेवल मूवमेंट पर नजर रखी जा रही है। पार्टी ने संगठन के अनुभवी पदाधिकारियों को अलग-अलग जिलों में भेजा है, जहाँ वे स्थानीय समस्याओं, टीएमसी के कमजोर इलाकों और संभावित असंतुष्ट कार्यकर्ताओं की पहचान कर रहे हैं। भाजपा का मानना है कि टीएमसी में अभी भी लोकल स्तर पर कई ऐसी इकाइयाँ हैं जिनमें असंतोष मौजूद है और उचित राजनीतिक माहौल बनाकर इन्हें भाजपा का समर्थक बनाया जा सकता है। इसी कारण भाजपा इन दिनों लगातार ‘‘नेता नहीं, कार्यकर्ता’’ सूत्र को दोहरा रही है, जिससे संदेश दिया जा सके कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व पर निर्भर रहने के बजाय जमीनी ढाँचा तैयार कर रही है।
इस रणनीति के साथ भाजपा उन मुद्दों को भी हवा दे रही है जो सीधे आम लोगों के रोज़मर्रा के अनुभव से जुड़े हैं। मतदाता सूची में गड़बड़ी और नागरिकता से जुड़े कागज़ात (SIR/CAA) जैसे मामलों में पार्टी लगातार जनसंपर्क अभियान चला रही है। कई जिलों में शिविर आयोजित किए जा रहे हैं जहाँ लोग अपने दस्तावेज़ सुधारने या शिकायत दर्ज करने आते हैं। भाजपा इसे जनता से नज़दीकी का मौका मानकर अपने प्रभाव का विस्तार कर रही है। पार्टी ने चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों में कथित अनियमितताओं की शिकायतें भी सौंपकर चुनावी तैयारी की तेज़ी का संदेश दिया है। संगठन का यह दावा भी है कि ऐसे शिविर स्थानीय कार्यकर्ताओं को जोड़ने और जनता में विश्वास बनाने का प्रमुख जरिया बन रहे हैं।
टीएमसी भी भाजपा की इस बदलती रणनीति से पूरी तरह अवगत है और अपने स्तर पर पलटवार में जुटी है। मुख्यमंत्री और पार्टी नेताओं ने संगठन को मजबूत करने, पुराने कार्यकर्ताओं को बंधे रखने और ‘‘घेराबंदी’’ में भाजपा की घुसपैठ रोकने के लिए जिला-स्तर पर बैठकों और अभियान की तीव्रता बढ़ा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञ इस पूरे परिदृश्य को बंगाल की राजनीति में उभरते ‘‘जमीन-केन्द्रित’’ संघर्ष के रूप में देख रहे हैं—जहाँ मुकाबला अब नेताओं की रैलियों या बड़े बयानों के बजाय बूथ-स्तर पर कार्यकर्ताओं के प्रभाव से तय होगा। भाजपा की नई योजना कितनी सफल होगी, यह आने वाले महीनों में इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कितनी तेजी से स्थानीय विश्वास जीत पाती है और टीएमसी इस चुनौती का कितनी मजबूती से जवाब देती है।













