कर्नाटक की राजनीति इस समय मुख्यमंत्री पद को लेकर गहराई से उभर रही रस्साकशी के कारण सुर्खियों में है। उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार के समर्थन में विधायकों का एक और समूह सोमवार को नई दिल्ली पहुँच गया, जिससे यह संकेत मिला कि राज्य की सत्ता संरचना में बदलाव की मांग अब और मुखर होती जा रही है। इन विधायकों का उद्देश्य कांग्रेस हाईकमान से मुलाकात करके यह संदेश देना है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद संभालना चाहिए, खासकर इसलिए क्योंकि पिछले साल विधानसभा चुनावों के बाद सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच पावर-शेयरिंग फॉर्मूला चर्चा में था, जिसके अनुसार कार्यकाल के आधे में नेतृत्व परिवर्तन की उम्मीद जताई जा रही थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर पार्टी ने ऐसे किसी लिखित समझौते की पुष्टि कभी नहीं की, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा लगातार सक्रिय रहा है।
इसी बीच वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने साफ किया है कि वे पद पर बने रहने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और आगामी बजट पेश करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री पद से संबंधित किसी भी बदलाव का निर्णय केवल पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही करेगा। वहीं दूसरी ओर, शिवकुमार समर्थक विधायकों की दिल्ली में बढ़ती आवाजाही यह दर्शाती है कि राज्य इकाई के भीतर असंतोष को हाईकमान की ओर ले जाने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं। दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में यह तीसरा अवसर है जब विधायक नए सिरे से दिल्ली पहुँचे हैं, जिससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि मामला अब स्थानीय राजनीति की सीमाओं से निकलकर राष्ट्रीय नेतृत्व की टेबल पर पहुँच चुका है।
कांग्रेस नेतृत्व भी कर्नाटक की इस उभरती स्थिति पर कड़ी नज़र रखे हुए है। दिल्ली और बेंगलुरु दोनों जगह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की लगातार बैठकें चल रही हैं। राहुल गांधी समेत केंद्रीय नेतृत्व की रणनीतिक चर्चाएँ भी तेज़ हुई हैं, क्योंकि कर्नाटक राज्य पार्टी के लिए राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि हाईकमान नेतृत्व परिवर्तन पर फैसला लेता है, तो इसका असर केवल सरकार पर ही नहीं बल्कि 2026 के लोकसभा उपचुनावों और आगामी संगठनात्मक समीकरणों पर भी पड़ सकता है। दूसरी ओर, यदि बदलाव नहीं होता और सिद्धारमैया ही पद पर बने रहते हैं, तो पार्टी को शिवकुमार समर्थक खेमे की नाराज़गी को शांत करने के लिए संतुलन साधना होगा।
राजनीतिक विश्लेषक इस घटनाक्रम को कर्नाटक की सामाजिक संरचना, वोक्कालिगा–ओबीसी राजनीतिक समीकरणों और स्थानीय नेतृत्व की शक्तियों के संदर्भ में देख रहे हैं। उनका कहना है कि शिवकुमार के समर्थन में आए कई विधायक दक्षिण कर्नाटक और मंड्या-बेंगलुरु क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं में शामिल हैं, जबकि सिद्धारमैया को व्यापक ओबीसी और ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत समर्थन प्राप्त है। ऐसे में हाईकमान के लिए फैसला आसान नहीं है, क्योंकि नेतृत्व परिवर्तन किसी न किसी वर्ग को नाराज़ कर सकता है। उधर, दिल्ली में जुट रहे शिवकुमार समर्थकों का यह अभियान यह दर्शाता है कि वे अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किसी निर्णायक परिणाम की प्रतीक्षा में नहीं हैं, बल्कि सक्रिय दबाव बनाकर पार्टी को निर्णय लेने की ओर प्रेरित करना चाहते हैं।
इन तमाम घटनाक्रमों के चलते कर्नाटक की राजनीति में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है और यह मुद्दा राज्य से निकलकर राष्ट्रीय स्तर की चर्चा का कारण बन गया है। अब सबकी निगाहें कांग्रेस हाईकमान पर टिकी हैं, जिसके अगले कदम से तय होगा कि कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन होगा या मौजूदा व्यवस्था यथावत जारी रहेगी। जो भी निर्णय सामने आएगा, उसके राजनीतिक प्रभाव व्यापक और दूरगामी होने की पूरी संभावना है।













