फरीदाबाद–दिल्ली से जुड़े जिस वर्चुअल आतंक मॉड्यूल का हाल ही में पर्दाफाश हुआ है, उसने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने आतंकवाद का एक नया, कहीं अधिक खतरनाक स्वरूप प्रस्तुत कर दिया है। यह मॉड्यूल पारंपरिक आतंकवादी ढाँचों से बिल्कुल अलग था, क्योंकि इसमें शामिल लोग डॉक्टर, विश्वविद्यालय-कर्मचारी, तकनीकी प्रशिक्षित युवक और सफेद-पोश प्रोफेशनल थे, जो अपनी पहचान और सामाजिक हैसियत का उपयोग करके गतिविधियों को आसानी से छुपाते रहे। दिल्ली में हुए हालिया ब्लास्ट की जांच ने जब फरीदाबाद की ओर संकेत किए, तो केंद्रीय एजेंसियों ने कई राज्यों में फैले नेटवर्क पर एक साथ छापेमारी शुरू की। इसी दौरान अल-फलाह विश्वविद्यालय से जुड़े कई ठिकानों, संबंधित कार्यालयों और निजी परिसरों से अहम दस्तावेज, डिजिटल रिकॉर्ड और वित्तीय लेन-देन से जुड़ी सामग्री बरामद की गई।
जांच अधिकारियों को कई स्थानों से विस्फोटक पदार्थ, बम बनाने के उपकरण और ऐसे साक्ष्य मिले, जो संकेत देते हैं कि यह समूह बड़े पैमाने पर हमलों की तैयारी में जुटा था। मॉड्यूल की सबसे चौंकाने वाली विशेषता यह थी कि इसमें जुड़े लोग डिजिटल तकनीक में दक्ष थे और सुरक्षित संवाद के लिए कोडेड भाषा, टेलीग्राम चैनल, निजी एन्क्रिप्टेड समूहों और रोजमर्रा के शब्दों को संचालन-संदेश की तरह इस्तेमाल करते थे। इससे स्पष्ट होता है कि यह पूरा नेटवर्क सोशल मीडिया और इंटरनेट की गुप्तता का सुनियोजित दुरुपयोग कर रहा था।
जांच के दौरान कॉल रिकॉर्ड, वित्तीय लेन-देन, सोशल मीडिया footprints और विश्वविद्यालय से जुड़े कई दस्तावेजों ने करीब दो सौ से अधिक लोगों को संदिग्ध सूची में ला दिया है। इनमें स्वास्थ्य क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों और तकनीकी सेवाओं से जुड़े लोग भी शामिल पाए गए हैं, जिससे यह खतरा और बढ़ जाता है कि ऐसे लोग आसानी से संवेदनशील स्थानों तक पहुँच बना सकते थे। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए ED ने भी मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की है और विश्वविद्यालय से जुड़े लेन-देन, शेल कंपनियों तथा संदिग्ध विदेशी फंडिंग की छानबीन की जा रही है।
प्रारंभिक जांच यह भी संकेत देती है कि मॉड्यूल के कुछ तार विदेशों से जुड़े हो सकते हैं। इसी कारण केंद्रीय एजेंसियों—NIA, IB, ED—ने साझा ऑपरेशन तेज कर दिया है और कई राज्यों की पुलिस के साथ मिलकर व्यापक स्तर पर छानबीन जारी है। डिजिटल डिवाइस, बैंक खातों, ऑनलाइन चैट्स, अकादमिक रिकॉर्ड और यात्रा विवरणों की गहन जांच की जा रही है। सुरक्षा एजेंसियाँ इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि यह नेटवर्क केवल एक स्थानीय मॉड्यूल नहीं था, बल्कि एक संगठित, बहु-स्तरीय और दीर्घकालिक रूप से सक्रिय आतंक संरचना थी, जो पेशेवर कौशल और व्हाइट-कॉलर ढांचे की आड़ में देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकती थी।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, नए नाम, नए स्थान और नई गतिविधियाँ सामने आ रही हैं। अधिकारियों का मानना है कि आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियाँ तथा बड़ी कार्रवाई संभव है। यह मामला भारतीय सुरक्षा तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है कि आतंकवाद अब केवल जंगलों, सीमावर्ती इलाकों या छिपे हुए ठिकानों तक सीमित नहीं रहा—यह अब शिक्षित, तकनीकी रूप से सक्षम और सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित वर्गों में खतरनाक रूप से जड़ें जमा रहा है, जिसे पहचानना और रोकना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।













