सेवा शर्तों में समानता का सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने आयुष बनाम एलोपैथिक विवाद बड़ी पीठ के हवाले किया

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

देश में लंबे समय से चल रहे इस सवाल पर कि क्या आयुष (AYUSH) प्रणाली से जुड़े डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों के समान सेवा-शर्तें मिलनी चाहिए या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाते हुए इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया है। शीर्ष अदालत ने यह निर्णय तब लिया जब कई राज्यों के आयुष चिकित्सकों ने अदालत में याचिकाएं दायर कीं, जिनमें उन्होंने रिटायरमेंट की आयु, वेतनमान और अन्य सेवा लाभों में समानता की मांग की थी।

मामले की पृष्ठभूमि में यह विवाद कई वर्षों से चला आ रहा है। कुछ राज्यों ने सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले एलोपैथिक डॉक्टरों और आयुष डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सेवा नियम बनाए हैं। उदाहरण के तौर पर, एलोपैथिक डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष तक तय की गई है, जबकि आयुष डॉक्टरों को 60 वर्ष में रिटायर होना पड़ता है। इसी तरह वेतन और पदोन्नति के मामलों में भी अंतर बनाए रखा गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जब दोनों श्रेणियों के डॉक्टर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा हैं और मरीजों की देखभाल की समान जिम्मेदारी निभाते हैं, तो उनके साथ सेवा शर्तों में भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

राज्य सरकारों की ओर से इस पर तर्क दिया गया कि एलोपैथिक और आयुष चिकित्सा प्रणालियाँ बुनियादी रूप से अलग हैं। एलोपैथिक डॉक्टरों का प्रशिक्षण, कार्यक्षेत्र और आपातकालीन चिकित्सा की जिम्मेदारियाँ आयुष डॉक्टरों से भिन्न हैं। इसलिए दोनों को समान वेतनमान और सेवा शर्तें देना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रश्न केवल सेवा नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि संवैधानिक समानता (Article 14) से भी जुड़ा है। अतः इस पर व्यापक कानूनी विचार की आवश्यकता है, जिसे बड़ी पीठ द्वारा ही सुलझाया जा सकता है।

सुनवाई के दौरान अदालत ने पहले के कुछ निर्णयों का हवाला भी दिया। कुछ फैसलों में न्यायालय ने आयुष चिकित्सकों को एलोपैथिक डॉक्टरों के समकक्ष लाभ देने की बात कही थी, जबकि अन्य मामलों में अदालत ने कहा था कि दोनों प्रणालियों में प्रशिक्षण और दायित्वों का अंतर इतना गहरा है कि समानता का दावा न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इसी विरोधाभास को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ को सौंपने का निर्णय लिया है।

इस निर्णय का असर पूरे देश की चिकित्सा सेवाओं पर पड़ सकता है। अगर बड़ी पीठ यह मानती है कि आयुष डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों के समान सेवा-शर्तें दी जानी चाहिए, तो इससे राज्यों को अपने स्वास्थ्य विभागों के नियमों और वेतनमानों में व्यापक बदलाव करने होंगे। वहीं, यदि अदालत यह तय करती है कि दोनों प्रणालियाँ मूल रूप से अलग हैं और समानता का दावा मान्य नहीं है, तो आयुष डॉक्टरों की यह पुरानी मांग एक बार फिर ठंडे बस्ते में चली जाएगी।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला बड़ी पीठ को सौंप दिया है, और अब इस पर सुनवाई की अगली तारीख तय की जाएगी। उम्मीद की जा रही है कि बड़ी पीठ इस प्रश्न पर एक विस्तृत और निर्णायक फैसला देगी, जो न केवल आयुष और एलोपैथिक चिकित्सकों की स्थिति स्पष्ट करेगा, बल्कि देशभर की स्वास्थ्य नीति पर भी दूरगामी प्रभाव छोड़ेगा।

Leave a Comment

और पढ़ें