मतदाता सूची पुनरीक्षण पर SC निर्देश: BLOs के घंटे कम करें, ज़रूरत पड़ने पर 3 गुना स्टाफ लगाएँ

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सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दौरान बूथ स्तर अधिकारियों (BLOs) पर बढ़ते कार्यभार और लगातार लंबी ड्यूटी के मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे BLOs के काम के घंटे घटाने के लिए तत्काल अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती सुनिश्चित करें, ताकि एक-एक अधिकारी पर अनावश्यक बोझ न पड़े और काम बराबरी से बँट सके। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुरूप कार्य कराना राज्यों की संवैधानिक जिम्मेदारी है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कर्मचारियों को असहनीय परिस्थितियों में काम करना पड़े।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह तथ्य प्रस्तुत किया गया कि कई राज्यों में BLOs को नियमित सरकारी ड्यूटी के साथ-साथ SIR के कार्य भी निभाने पड़ रहे हैं। इससे कई बार उन्हें सुबह-शाम, यहाँ तक कि रात में भी काम करने की स्थिति बन गई। कुछ राज्यों में तो BLOs की मौत और आत्महत्या की खबरें भी सामने आईं, जिन्हें परिवारजनों ने अत्यधिक कार्यभार और मानसिक तनाव से जोड़कर देखा। अदालत ने इन रिपोर्टों को अत्यंत संवेदनशील बताते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकतीं, क्योंकि सरकारी कामकाज का उद्देश्य कर्मचारियों को संकट में डालना नहीं है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी BLO को स्वास्थ्य, पारिवारिक परिस्थितियों या अन्य व्यक्तिगत कारणों से राहत चाहिए, तो राज्य सरकारें उसकी मांग पर मामले-दर-मामला विचार करें और उसकी जगह तुरंत किसी अन्य योग्य कर्मचारी की तैनाती करें। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जहाँ आवश्यकता अधिक हो, वहाँ तैनाती तीन गुना तक बढ़ाई जा सकती है, ताकि SIR के दौरान होने वाली असुविधा और तनाव को कम किया जा सके।

न्यायालय ने राज्य सरकारों और चुनाव आयोग से अपेक्षा जताई कि वे मिलकर एक ऐसी व्यवस्था बनाएँ, जिसमें मतदाता सूची पुनरीक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य सुचारू रूप से तो हों, लेकिन किसी कर्मचारी की शारीरिक या मानसिक सेहत जोखिम में न पड़े। BLOs के कार्यभार को कम करना, कार्य-घंटों को संतुलित करना और जरूरत के अनुसार अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती करना सरकारों की मूलभूत जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश संकेत देता है कि प्रशासनिक कामकाज चाहे कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, उसे मानव-केन्द्रित और न्यायसंगत होना चाहिए।

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