PMO को नया पहचान-चिह्न ‘सेवा तीर्थ’, राज्यों में राजभवनों का नाम परिवर्तन शुरू

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केंद्र सरकार ने प्रशासनिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का नाम बदलकर अब “सेवा तीर्थ” कर दिया है। वर्षों से देश की सर्वोच्च कार्यपालिका का यह प्रमुख कार्यालय सत्ता के केंद्र के रूप में पहचाना जाता रहा है, लेकिन सरकार ने इसे एक नई वैचारिक पहचान देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। नाम परिवर्तन के इस फैसले को सरकार “सत्ता से सेवा” की भावना की ओर एक सांस्कृतिक बदलाव के रूप में देख रही है। इसके साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद राज्यपालों के आधिकारिक आवास—जिन्हें पारंपरिक रूप से “राजभवन” कहा जाता था—को नया नाम “लोक भवन” दिया गया है, जिससे शासन को अधिक लोकतांत्रिक, जन-केंद्रित और समावेशी स्वरूप देने का संदेश प्रसारित किया जा सके।

नई पहचान के साथ PMO अब एक बिल्कुल नए परिसर में संचालित होगा। सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत निर्मित इस परिसर को पहले “एक्जीक्यूटिव एन्क्लेव” कहा जाता था, लेकिन अब सरकार ने इसे “सेवा तीर्थ” के नाम से स्थापित करने का निर्णय लिया है। आधुनिक तकनीक से लैस यह विशाल प्रशासनिक परिसर तीन मुख्य इमारतों में विभाजित है—सेवा तीर्थ-1, सेवा तीर्थ-2 और सेवा तीर्थ-3। इनमें से सेवा तीर्थ-1 प्रधानमंत्री कार्यालय के रूप में कार्य करेगा, जबकि सेवा तीर्थ-2 में कैबिनेट सचिवालय और सेवा तीर्थ-3 में राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अन्य प्रमुख संवेदनशील कार्यालयों के संचालन की व्यवस्था रखी जाएगी। इन नए भवनों को इस तरह डिजाइन किया गया है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया और शासन संचालन अधिक तेज, डिजिटल और पारदर्शी बन सके।

सरकार के अनुसार, PMO का नया नाम और नया परिसर दोनों ही प्रशासनिक प्रणाली में गुणवत्ता आधारित परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत तैयार यह संरचना न केवल नई तकनीक से लैस है, बल्कि इसे उन ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है जो आने वाले दशकों में भारत के प्रशासनिक ढांचे के लिए अनिवार्य होंगी। उच्च स्तरीय डिजिटल नेटवर्क, त्वरित कम्युनिकेशन सिस्टम, डेटा-सुरक्षा के उन्नत इंतज़ाम और वैश्विक मानकों के अनुरूप इन्फ्रास्ट्रक्चर इस परिसर को देश के सबसे सुरक्षित और सक्षम प्रशासनिक स्थलों में शामिल करता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि “सेवा तीर्थ” नाम केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यह शासन की दिशा में एक वैचारिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है। भारत में लंबे समय से चल रही उपनिवेशकालीन नामकरण परंपराओं को समाप्त करने और उन्हें भारतीय समाज की भावनाओं, मूल्यों व लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप परिवर्तित करने की प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों से लगातार जारी है। “राजपथ” का नाम बदलकर “कर्तव्य पथ”, प्रधानमंत्री आवास मार्ग का नाम “लोक कल्याण मार्ग”—ये सभी उसी श्रृंखला के कदम रहे हैं। अब PMO को “सेवा तीर्थ” के रूप में पहचान देना इस विचारधारा को और भी सुदृढ़ बनाता है कि शासन का उद्देश्य “राजसत्ता” नहीं, बल्कि “जनता की सेवा” है।

राजभवनों का नाम परिवर्तन भी इसी सोच का विस्तार है। “लोक भवन” नाम जनता के साथ नज़दीकी संबंध, लोकतांत्रिक भागीदारी और पारदर्शिता की भावना को मजबूत करता है। सरकार का कहना है कि इन बदलावों से प्रशासनिक संस्थाओं को जनता-हित के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने का संदेश मिलता है।

कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री कार्यालय का नई पहचान के साथ “सेवा तीर्थ” बनना देश की प्रशासनिक संरचना में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। यह बदलाव न केवल स्थापत्य संरचना या नामकरण का है, बल्कि इसके माध्यम से शासन के चरित्र में एक गहरे परिवर्तन का संकेत दिया गया है—जहां पद, प्रतिष्ठा या शक्ति नहीं, बल्कि निष्ठा, कर्तव्य और सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। आने वाले वर्षों में यह देखा जाएगा कि यह नया ढांचा शासन को किस प्रकार और अधिक प्रभावी, संवेदनशील और जनता-केंद्रित बनाता है, लेकिन फिलहाल यह परिवर्तन सरकार की एक बड़ी और अहम पहलकदमी के रूप में चर्चा का विषय बना हुआ है।

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