अमेरिका की मध्यस्थता से अफ्रीका में एक बड़ा संघर्ष शांत होने की दिशा में बढ़ रहा है। डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) और रवांडा के बीच लंबे समय से जारी तनाव को समाप्त करने के लिए दोनों देशों के राष्ट्रपति जल्द ही वाशिंगटन में शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले हैं। यह पहल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में आगे बढ़ाई गई है, जिसने कई दौर की कूटनीतिक बैठकों के बाद एक ठोस रूप लेना शुरू किया है। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष—फेलिक्स त्शिसेकेदी और पॉल कागामे—के मिलने की पुष्टि के बाद क्षेत्रीय शांति के लिए नई उम्मीदें जागी हैं।
यह समझौता कई महीनों की जटिल और संवेदनशील वार्ताओं का परिणाम है। इस वर्ष जून में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने ‘डिक्लेरेशन ऑफ प्रिंसिपल्स’ नामक प्रारंभिक दस्तावेज पर सहमति जताई थी, जिसके बाद सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और विद्रोही गतिविधियों पर विस्तृत बातचीत जारी रही। पूर्वी कांगो में सक्रिय M23 विद्रोही समूह इस संघर्ष का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में इस समूह को बाहरी समर्थन मिलने के आरोप लगाए गए हैं, जिन्हें रवांडा ने खारिज किया है। आगामी शांति समझौता इन विवादित पहलुओं पर अंतिम समाधान खोजने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
इस प्रक्रिया में सुरक्षा और राजनीतिक मुद्दों के साथ आर्थिक पहलुओं को भी शामिल किया गया है। अमेरिका ने प्रस्ताव रखा है कि शांति लागू होने के बाद खनिज संपदा वाले इलाकों में निवेश बढ़ाकर स्थिरता और विकास को साथ जोड़ा जाए। ऐसा माना जा रहा है कि आर्थिक सहयोग और संसाधन प्रबंधन पर सहमति से दोनों देशों के बीच विश्वास बहाल करने में मदद मिलेगी। हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि केवल आर्थिक लाभों पर जोर देने से स्थायी शांति सुनिश्चित नहीं की जा सकती; इसके लिए जमीन पर सशस्त्रीकरण, विस्थापितों की वापसी और शासन व्यवस्था की बहाली बेहद आवश्यक होगी।
विश्लेषकों का मानना है कि वाशिंगटन में होने वाला हस्ताक्षर समारोह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तो होगा, लेकिन वास्तविक सफलता तभी मानी जाएगी जब दोनों पक्ष समझौते के नियमों का ईमानदारी से पालन करें। M23 जैसे सशस्त्र समूहों को निरस्त्र करना, सीमा क्षेत्रों में सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करना और स्थानीय समुदायों का विश्वास जीतना अभी भी बड़े प्रयास की माँग करता है। इस पूरी प्रक्रिया में अफ्रीकी संघ, कतर और अन्य क्षेत्रीय साझेदार भी निगरानी और सहयोग की भूमिका निभा रहे हैं।
यदि यह समझौता सफलतापूर्वक लागू होता है, तो पूर्वी कांगो में वर्षों से चल रही हिंसा, विस्थापन और अस्थिरता समाप्त होने की उम्मीद है। लाखों प्रभावित नागरिकों के लिए यह समझौता राहत और पुनर्वास का रास्ता खोल सकता है। वहीं दूसरी ओर, किसी भी पक्ष द्वारा समझौते का पालन न करना या जमीन पर सुधार में देरी एक बार फिर संघर्ष को जन्म दे सकती है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस प्रक्रिया पर कड़ी नजर बनाए हुए है।













