हरिद्वार में वर्ष 2027 में आयोजित होने वाले अर्धकुंभ के लिए तैयारियाँ तेज हो गई हैं। इसी क्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने साधु-संतों और अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की, जिसमें मेले की व्यवस्थाओं पर विस्तार से चर्चा हुई। अखाड़ों के बीच चल रही रार और कुछ मुद्दों पर असहमति को देखते हुए मुख्यमंत्री ने स्वयं सभी पक्षों को साथ बैठाकर समाधान निकालने की कोशिश की। बैठक में श्रद्धालुओं की सुरक्षा, भीड़ प्रबंधन, पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन, स्वास्थ्य सेवाओं और आपातकालीन सुविधाओं के प्रभावी संचालन जैसे विषय प्रमुखता से उठाए गए। प्रशासन की ओर से बताया गया कि अर्धकुंभ का पहला शाही स्नान 14 जनवरी 2027, मकर संक्रांति के पवित्र अवसर पर आयोजित किए जाने का प्रस्ताव है, जबकि अन्य शाही स्नानों की तिथियाँ अखाड़ों की सहमति और पंचांग के अनुसार अंतिम रूप से तय की जाएँगी।
अर्धकुंभ को सफल बनाने के लिए हरिद्वार में बड़े पैमाने पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की योजना तैयार की जा रही है। मेले के दौरान लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना को देखते हुए शहर में अस्थायी सुव्यवस्थित मेला-शहर बसाने की रूपरेखा बनाई गई है, जिसमें सेक्टरवार व्यवस्थाएं, पुलिस चौकियाँ, अस्थायी अस्पताल, पार्किंग ज़ोन और आपात सेवा केंद्र शामिल होंगे। गंगा तट पर घाटों का विस्तार और नए घाटों के निर्माण का कार्य भी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि शाही स्नान और आम स्नान के दौरान भीड़ को सुरक्षित तरीके से नियंत्रित किया जा सके। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि मुख्य निर्माण और विकास कार्य 2026 के अंतिम महीनों तक पूरे कर लिए जाएँ, जिससे आयोजन से पहले सभी व्यवस्थाओं का परीक्षण और सुधार संभव हो सके।
बैठक के दौरान वित्तीय प्रबंधन और केंद्र सरकार से सहयोग पर भी चर्चा हुई। मुख्यमंत्री धामी पहले भी अर्धकुंभ से संबंधित योजनाओं के लिए केंद्रीय सहायता का अनुरोध कर चुके हैं। इन योजनाओं में सड़क, पुल, विद्युत लाइनों, जल निकासी प्रणालियों और परिवहन नेटवर्क के उन्नयन जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं, जो न केवल मेले के दौरान बल्कि लंबे समय तक हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों को लाभ पहुँचाएंगी। स्थानीय जनता के लिए भी अर्धकुंभ एक बड़े अवसर के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इससे पर्यटन, व्यापार और सेवा क्षेत्र में असंख्य रोजगार और आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने की उम्मीद है।
सरकार और प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि अर्धकुंभ का आयोजन पारंपरिक धार्मिक स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए आधुनिक प्रबंधन और तकनीक की सहायता से किया जाएगा। सफाई, जल-प्रबंधन, स्वच्छता, यातायात नियंत्रण और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर विशेष योजनाएँ तैयार की जा रही हैं। अखाड़ों के साथ उत्पन्न मतभेदों को बातचीत से दूर करने की कोशिश जारी है, ताकि 2027 का अर्धकुंभ श्रद्धालुओं, साधु-संतों और स्थानीय निवासियों के लिए शांति, आस्था और सुव्यवस्था का प्रतीक बन सके।













