नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार की सत्ता संभालने जा रहे हैं और यह उनका दसवाँ कार्यकाल होगा। पटना के गांधी मैदान में होने वाला शपथ ग्रहण समारोह इस बार बेहद खास रहा, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र सरकार और एनडीए के कई शीर्ष नेता मौजूद रहे। बड़े स्तर पर की गई तैयारियों के बीच कार्यक्रम को शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी देखा गया। इससे पहले जेडीयू और भाजपा की संयुक्त बैठक में नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से एनडीए विधायक दल का नेता चुन लिया गया था। इसके बाद समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपे गए और सरकार गठन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से आगे बढ़ी।
गांधी मैदान में बनाए गए भव्य मंच, विशिष्ट अतिथियों के लिए विशेष व्यवस्था तथा हजारों लोगों के बैठने की व्यवस्था जल्दबाजी और मजबूती दोनों का मिश्रण दिख रही थी। प्रशासन और सुरक्षाबलों ने जगह-जगह नाके और विशेष मार्ग बनाए ताकि वीआईपी मूवमेंट बिना व्यवधान पूरा हो सके। इस आयोजन में भाजपा, जेडीयू और अन्य गठबंधन दलों के नेताओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इतनी बड़ी केंद्रीय मौजूदगी यह संकेत देती है कि आने वाले समय में राज्य सरकार और केंद्र के बीच तालमेल और मजबूत होगा।
इस बीच भाजपा और जेडीयू के भीतर विभागों के बंटवारे को लेकर बैठकों का दौर भी जारी रहा। चर्चा यह भी है कि भाजपा के हिस्से में कुछ प्रमुख मंत्रालय जा सकते हैं और एक से अधिक डिप्टी सीएम बनाए जाने की संभावना खुली है। सहयोगी दलों को भी प्रतिनिधित्व देने पर सहमति बन रही है ताकि गठबंधन संरचना में संतुलन कायम रहे। हालांकि मंत्रिमंडल की अंतिम सूची के लिए अभी सभी की निगाहें आधिकारिक घोषणा पर टिकी हैं।
राजनीतिक हलकों में यह शपथ ग्रहण समारोह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि बिहार की आगामी नीति दिशा की झलक के रूप में भी देखा जा रहा है। समर्थकों में उत्साह और उत्सवी माहौल था, वहीं विपक्ष ने समारोह की भव्यता को लेकर सवाल उठाए और इसे “राजनीतिक प्रदर्शन” बताया। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि नीतीश कुमार की नई सरकार अपने शुरुआती 100 दिनों में क्या प्रमुख कदम उठाती है और राज्य की प्रशासनिक प्राथमिकताओं को किस दिशा में ले जाती है।












