बिहार विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। 11 नवंबर को राज्य की 122 सीटों पर मतदान हुआ, जिसने आने वाले पाँच वर्षों के लिए बिहार की राजनीति की दिशा तय करने का आधार तैयार किया। सुबह सात बजे से शुरू हुए मतदान में प्रारंभिक घंटों में मतदाताओं का उत्साह दिखाई दिया और चुनाव आयोग की रिपोर्टों के अनुसार कई इलाकों में अच्छी भागीदारी दर्ज की गई। यह चरण न केवल संख्यात्मक रूप से बड़ा है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी निर्णायक माना जा रहा है, क्योंकि यही तय करेगा कि सत्ता की बागडोर दोबारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों में जाएगी या तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एक नया राजनीतिक समीकरण उभरेगा।
इस बार का मुकाबला दो प्रमुख गठबंधनों के बीच है। एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) है, जिसमें भाजपा और जदयू के बीच सीटों का लगभग बराबर बंटवारा हुआ है। दूसरी तरफ महागठबंधन है, जिसका नेतृत्व राजद कर रही है और जिसमें कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं। दोनों खेमों ने अपने-अपने मुद्दों और रणनीतियों पर जोर दिया है। NDA की तरफ से नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के विकास कार्यों — सड़क, बिजली, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा योजनाओं — को केंद्र में रखा है, जबकि भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को चुनावी नैरेटिव का हिस्सा बनाया है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने बेरोज़गारी, महंगाई और युवाओं को रोजगार देने जैसे मुद्दों को केंद्र में रखते हुए प्रचार अभियान को आगे बढ़ाया है।
चुनाव प्रचार के दौरान दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चला। नीतीश कुमार ने जहां “सशासन” और “विकास” की बात की, वहीं तेजस्वी यादव ने “परिवर्तन” और “नई सोच” की बात रखी। जातीय समीकरण और सामाजिक गठजोड़ अब भी इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। कई सीटों पर स्थानीय स्तर पर बगावत और चार-तरफा मुकाबले देखने को मिल रहे हैं, जिसने नतीजों की भविष्यवाणी को और कठिन बना दिया है।
चुनाव से पहले मतदाता सूची में किए गए बदलावों और हटाए गए नामों को लेकर भी विवाद खड़ा हुआ। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से हटाए हैं, जिससे निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सभी कार्य नियमों के अनुसार किए गए हैं। इस विवाद ने मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर राजनीतिक बहस को और गर्मा दिया।
चुनाव रणनीति के तौर पर जदयू ने बूथ-स्तर पर संपर्क और महिला मतदाताओं पर विशेष ध्यान केंद्रित किया, जबकि तेजस्वी यादव ने बड़ी जनसभाओं और युवाओं से सीधा संवाद साधने की नीति अपनाई। कई जगहों पर महागठबंधन के घटक दलों के बीच तालमेल की कमी भी चर्चा का विषय रही। वहीं, भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारकर मोदी फैक्टर को पूरी तरह भुनाने की कोशिश की।
विभिन्न सर्वेक्षणों में मिले-जुले परिणाम सामने आए हैं। कुछ सर्वेक्षणों ने NDA को मामूली बढ़त दी है, जबकि कुछ ने मुकाबले को बेहद कड़ा बताया है। विश्लेषकों का मानना है कि कई सीटों पर नतीजे बहुत मामूली अंतर से तय हो सकते हैं। मतगणना 14 नवंबर को होगी, जिसके बाद यह तय होगा कि क्या नीतीश कुमार का “निश्चय” जारी रहेगा या तेजस्वी यादव का “प्रण” राज्य की सत्ता तक पहुँचेगा।
बिहार चुनाव का यह अंतिम संग्राम परंपरागत और आधुनिक राजनीतिक भावनाओं के बीच फंसा हुआ है। एक ओर विकास और प्रशासनिक स्थिरता की बात है, तो दूसरी ओर युवाओं के भविष्य, रोजगार और नई पीढ़ी के नेतृत्व की उम्मीदें हैं। इस चुनाव का नतीजा न केवल बिहार की सत्ता तय करेगा बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी आगामी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।













