अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया निर्देश के बाद विश्व राजनीति और सुरक्षा हलकों में एक बार फिर हलचल मच गई है। ट्रंप ने पेंटागन को आदेश दिया है कि अमेरिका परमाणु हथियारों के परीक्षण कार्यक्रम को फिर से शुरू करने की दिशा में काम करे। इस घोषणा ने न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन की यह पहल रूस और चीन की बढ़ती परमाणु गतिविधियों के जवाब में की जा रही है, ताकि वैश्विक रणनीतिक संतुलन बनाए रखा जा सके।
हालाँकि, इस फैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि क्या अमेरिका फिर से वास्तविक परमाणु विस्फोट करेगा। इस पर अमेरिकी ऊर्जा मंत्री क्रिस राइट ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि फिलहाल जिन परीक्षणों की बात की जा रही है, वे “गैर-परमाणु” होंगे। उन्होंने बताया कि इन परीक्षणों का उद्देश्य केवल हथियारों के घटकों और प्रणालियों की तकनीकी जाँच करना है, न कि किसी प्रकार का भूमिगत या खुले में विस्फोट करना। ऊर्जा मंत्रालय के अधीन नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (NNSA) इन परीक्षणों की देखरेख करेगी।
गौरतलब है कि अमेरिका ने आखिरी बार 1992 में परमाणु परीक्षण किया था। उसके बाद से उसने एक अनौपचारिक मोराटोरियम (प्रतिबंध) के तहत परीक्षण रोक रखे हैं। इस बीच, अमेरिका ने आधुनिक कम्प्यूटेशनल सिमुलेशन और सूक्ष्म स्तर के प्रयोगों के जरिए अपने हथियारों की विश्वसनीयता बनाए रखी है। इसलिए ट्रंप की इस घोषणा को कुछ विशेषज्ञ केवल राजनीतिक संदेश के रूप में भी देख रहे हैं — यानी शक्ति प्रदर्शन और विरोधी देशों को चेतावनी देने के लिए।
दूसरी ओर, रूस और चीन ने अमेरिका की इस नीति-परिवर्तन पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अगर अमेरिका परमाणु परीक्षणों की दिशा में आगे बढ़ता है, तो इससे वैश्विक हथियार प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और परमाणु अप्रसार (non-proliferation) के प्रयास कमजोर होंगे। पर्यावरणविदों और सुरक्षा विश्लेषकों ने भी चेतावनी दी है कि यदि वास्तविक परमाणु विस्फोट फिर से शुरू हुए तो इसका असर पर्यावरण और वैश्विक शांति दोनों पर पड़ सकता है।
अमेरिकी प्रशासन ने फिलहाल यह साफ किया है कि किसी तरह के “परमाणु विस्फोट” की तत्काल योजना नहीं है। ऊर्जा विभाग ने यह भी कहा है कि किसी भी प्रकार का परीक्षण करने से पहले सभी पर्यावरणीय और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा। इसके साथ ही प्रशासन ने यह संकेत भी दिया है कि आगे की रूपरेखा रक्षा विभाग और तकनीकी एजेंसियों की सलाह के आधार पर तय की जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा अब एक नई बहस को जन्म दे चुका है — क्या दुनिया फिर से परमाणु शक्ति प्रदर्शन की दौड़ में लौट रही है? ट्रंप के इस कदम से निश्चित रूप से वैश्विक रणनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। हालांकि अमेरिकी ऊर्जा सचिव की सफाई ने फिलहाल यह स्पष्ट कर दिया है कि अभी किसी प्रत्यक्ष परमाणु विस्फोट की योजना नहीं है, लेकिन आने वाले महीनों में यह विषय वैश्विक कूटनीति और सुरक्षा विमर्श का केंद्र बने रहने वाला है।













