अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर भारत को चेतावनी दी है कि अगर उसने रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद नहीं किया तो उसे अमेरिका की ओर से भारी टैरिफ (शुल्क) का सामना करना पड़ेगा। ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर बातचीत की है और मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि भारत रूस से तेल खरीदने में कमी लाएगा। हालांकि, भारत सरकार ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि हाल में दोनों नेताओं के बीच किसी तरह की बातचीत की जानकारी उसके पास नहीं है।
विदेश मंत्रालय ने ट्रम्प के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत अपने ऊर्जा हितों के लिए स्वतंत्र नीति अपनाता है और उसका मुख्य उद्देश्य अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना है। मंत्रालय के अनुसार, भारत वैश्विक तेल बाज़ार में विविधता लाने का प्रयास कर रहा है ताकि ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। वहीं, ऊर्जा मंत्रालय ने भी निजी रिफाइनिंग कंपनियों से रूस से आयात से जुड़ा डेटा मांगा है, ताकि वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सके।
अमेरिका का आरोप है कि रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद सस्ते दामों पर तेल बेचकर अपनी युद्ध मशीनरी को वित्तीय सहारा दे रहा है। व्हाइट हाउस ने कहा कि अमेरिका अपने साझेदार देशों, खासकर भारत जैसे बड़े आयातकों से उम्मीद करता है कि वे रूसी तेल पर निर्भरता घटाएँगे। अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि भारत ने हाल के महीनों में रूस से तेल आयात में कुछ कमी की है, लेकिन ऊर्जा बाजार के ताजा आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2025 में भारत का रूसी तेल आयात फिर से बढ़कर करीब 1.9 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुँच गया है।
ट्रम्प ने अपने बयान में कहा कि “अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करता, तो हम भारत से आने वाले निर्यातित उत्पादों पर बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाएंगे।” विश्लेषकों का कहना है कि यदि अमेरिका वास्तव में ऐसा करता है, तो इसका असर भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों पर गहरा पड़ सकता है। भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्र — जैसे वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी सेवाएँ — अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। ऐसे में टैरिफ बढ़ने से भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित हो सकती है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस बयान को केवल दबाव बनाने की रणनीति मानते हैं। उनका कहना है कि ट्रम्प प्रशासन कई बार व्यापारिक सौदों में बढ़त पाने के लिए इस तरह के ‘टैरिफ कार्ड’ का इस्तेमाल करता रहा है। लेकिन, यदि इसे वास्तविकता में लागू किया गया तो यह कदम भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में नई खटास पैदा कर सकता है।
ट्रम्प के बयान पर भारत की प्रतिक्रिया भी काफी सधी हुई रही। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत की ऊर्जा नीति पूरी तरह राष्ट्रीय हितों पर आधारित है और वह किसी बाहरी दबाव में निर्णय नहीं लेगा। भारत पहले भी यह स्पष्ट कर चुका है कि वह अपने उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सस्ते स्रोतों से तेल आयात करता रहेगा।
राजनयिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद भविष्य में दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग और व्यापारिक वार्ताओं पर असर डाल सकता है। वहीं, यह भी संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका का यह बयान वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा करने की कोशिश है ताकि रूस की आय पर अप्रत्यक्ष रूप से असर डाला जा सके।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों के अनुसार, यदि अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगाए तो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और तेल बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है। चूंकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, इसलिए उसके आयात व्यवहार में कोई भी बदलाव अंतरराष्ट्रीय कीमतों को प्रभावित कर सकता है।
कुल मिलाकर, ट्रम्प की यह धमकी सिर्फ एक राजनीतिक बयान है या वाकई में कोई ठोस नीति की ओर इशारा करती है — यह आने वाले हफ्तों में स्पष्ट होगा। फिलहाल भारत ने यह साफ कर दिया है कि उसकी ऊर्जा नीति उसके अपने राष्ट्रीय और आर्थिक हितों के अनुरूप ही तय होगी, न कि किसी दबाव में।













