दो दिन में 258 नक्सली सरेंडर, अमित शाह बोले – खत्म हो रहा ‘लाल आतंक’

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देश में नक्सलवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में केंद्र सरकार को बड़ी सफलता मिली है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को घोषणा की कि छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर क्षेत्र अब पूरी तरह नक्सल मुक्त हो गया है। यह वही इलाका है, जिसे लंबे समय तक नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। शाह ने बताया कि बीते दो दिनों में कुल 258 नक्सलियों ने हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया है। इनमें से गुरुवार को अकेले 170 नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में आत्मसमर्पण किया, जबकि एक दिन पहले राज्य में 27 और महाराष्ट्र में 61 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था।

अमित शाह ने इसे सुरक्षा बलों और सरकार के समन्वित प्रयासों का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में नक्सल प्रभावित इलाकों में लगातार सघन अभियान चलाए गए, जिसके चलते नक्सलियों का प्रभाव सीमित क्षेत्रों तक सिमट गया है। शाह ने कहा कि अब केवल दक्षिणी बस्तर के कुछ इलाकों में ही नक्सलियों की मौजूदगी बची है, जिसे भी जल्द समाप्त कर दिया जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार की रणनीति के तहत वर्ष 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद का लगभग पूर्ण उन्मूलन कर दिया जाएगा।

गृहमंत्री ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सरकार की पुनर्वास योजनाओं के तहत आर्थिक सहायता, रोजगार के अवसर और समाज में सम्मानपूर्वक वापसी का मौका दिया जा रहा है। इन योजनाओं का मकसद है कि जो लोग हिंसा का रास्ता छोड़ चुके हैं, उन्हें शिक्षा, रोजगार और पुनर्वास के जरिए एक नया जीवन मिले। सुरक्षा बलों की रणनीति में केवल मुठभेड़ नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों का विश्वास जीतने पर भी खास ध्यान दिया गया है।

अबूझमाड़ और आसपास के क्षेत्र वर्षों से नक्सलियों का मजबूत गढ़ रहे हैं। घने जंगलों और कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण यह इलाका प्रशासन की पहुंच से काफी हद तक दूर था। लेकिन हाल के वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने संयुक्त रूप से सड़क, संचार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को इस क्षेत्र तक पहुंचाने का अभियान शुरू किया। प्रशासनिक उपस्थिति बढ़ने के साथ ही लोगों में विकास और स्थिरता की उम्मीद जगी। अब जब इन क्षेत्रों को नक्सलमुक्त घोषित किया गया है, तो स्थानीय लोगों में शांति और सामान्य जीवन की वापसी को लेकर उत्साह देखा जा रहा है।

विशेषज्ञों के अनुसार, नक्सलवाद के खिलाफ यह उपलब्धि ऐतिहासिक है, लेकिन चुनौती अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। आत्मसमर्पण के बाद इन नक्सलियों के पुनर्वास, समाज में पुनः एकीकरण और युवाओं को वैकल्पिक शिक्षा एवं रोजगार से जोड़ने की दिशा में सतत प्रयास जरूरी हैं। नक्सल विचारधारा के पुनरुत्थान को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर भरोसे और संवाद को बनाए रखना होगा। सुरक्षा बलों की भूमिका के साथ-साथ सामाजिक संगठनों और नागरिक प्रशासन की जिम्मेदारी भी इसमें महत्वपूर्ण होगी।

राजनीतिक स्तर पर भी इस उपलब्धि को बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। सत्ता पक्ष ने इसे मोदी सरकार की सुरक्षा और विकास नीति की जीत बताया है। वहीं, सामाजिक संगठनों ने यह भी कहा है कि आत्मसमर्पण करने वालों को न्यायसंगत व्यवहार और पुनर्वास की गारंटी दी जानी चाहिए ताकि उनका समाज में स्थायी पुनर्स्थापन हो सके।

कुल मिलाकर, अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर में नक्सलवाद का खात्मा देश के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यह संकेत है कि भारत अब उस दिशा में आगे बढ़ रहा है जहाँ विकास, सुरक्षा और शांति साथ-साथ चल सकें। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि सरकार की विकास योजनाएँ कितनी तेजी से जमीन पर उतरती हैं और यह सफलता स्थायी शांति में कैसे तब्दील होती है।

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