टेलंगाना सरकार द्वारा लोकल बॉडी चुनावों में पिछड़ी जातियों/बैकवर्ड क्लासेस (BC/OBC) के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाने के सरकारी आदेश (GO) को अदालतों में चुनौती मिली हुई है और अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील पर फ़ौरन हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के अंतरिम स्टे (रोक) को बरकरार रखा है। इससे राज्य सरकार की 42% की युक्ति को फिलहाल लागू करने पर रोक बनी हुई है।
हाईकोर्ट के आदेश में मुख्य रूप से यह तर्क रखा गया था कि 42% आरक्षण देने से कुल आरक्षण 67% हो जाएगा (BC 42% + SC 15% + ST 10%) — जो सुप्रीम कोर्ट के बनाए गए 50% की ऊपरी सीमा और संबंधित संवैधानिक-वैधानिक मानदंडों से स्पष्ट रूप से अधिक है। इसलिए हाईकोर्ट ने GO पर अंतरिम स्टे लगा दी और राज्य से जवाब माँगा। सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश में दखल देने से मना कर दिया, जिससे हाईकोर्ट का स्टे कायम रहा।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के स्टे के खिलाफ शीघ्र सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की थी और सरकार का तर्क रहा कि वे सामाजिक न्याय और जातिगत सर्वे के आधार पर सुधार लागू करना चाह रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल अन्तरिम राहत देने से इंकार कर दिया — अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया कि अंतिम निर्णय किस पक्ष में जाएगा; वह केवल हाईकोर्ट के स्टे को बरकरार रख रही है। इस पर राज्य ने अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखने का संकेत दिया है।
इस फैसले के राजनीतिक और प्रशासनिक असर भी तेजी से दिखने लगे हैं। बैकवर्ड क्लासेज़ (BC/OBC) के संगठन और कुछ राजनीतिक दलों ने 42% आरक्षण का समर्थन करते हुए राज्यव्यापी बंद के आह्वान और धरना-प्रदर्शन की घोषणा की है — जिस पर BRS के नेता K. T. Rama Rao (KTR) ने भी समर्थन जताया है और केंद्र व राज्य दोनों से संसदीय स्तर पर इस विषय को उठाने का आग्रह किया है। वहीं विपक्ष तथा कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि संवैधानिक 50% सीमा पार की कोशिश की गई तो न्यायालयी चुनौतियाँ और बढ़ेंगी।
स्थानीय चुनावों के संचालन के संदर्भ में अदालतों ने जो पैरामिटर दिए हैं, उनके मुताबिक चुनाव कराए जा सकते हैं बशर्ते कि कुल आरक्षण 50% की रोक से ऊपर न जाए — यानि यदि सरकार 42% को लागू करना चाहती है तो उसके कारण कुल आरक्षण 50% की सीमा को पार करना पड़ेगा, जो फिलहाल हाईकोर्ट के स्टे और सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा रुख के चलते संभव नहीं माना जा रहा। इसका मतलब यह है कि स्थानीय चुनाव का समय-सारिणी और आरक्षण-सीट अलोकेशन इसी अदालतीन वातावरण से प्रभावित होंगे।
अंत में: यह मामला न सिर्फ टेलंगाना की राजनीति और स्थानीय शासन के लिए अहम है, बल्कि देश में आरक्षण पर न्यायिक सिद्धांतों (विशेषकर 50% सीमा) और संवैधानिक मूल्यों के बीच संतुलन की भी एक बड़ी कड़ी पेश करता है। सरकार ने कानूनी तौर पर इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और शीर्ष अदालत की अगली सुनवाई से इस विवाद का निर्णायक मोड़ तय होने की संभावना है। फिलहाल हाईकोर्ट के स्टे तथा सुप्रीम कोर्ट के बनाए गए मौजूदा रुख के कारण 42% आरक्षण तत्काल लागू नहीं हो पाया है।













