पुतिन यात्रा से पहले रूस ने बढ़ाई रफ़्तार, लॉजिस्टिक्स समझौता जल्द लागू

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भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी एक नए चरण की ओर बढ़ती दिख रही है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4–5 दिसंबर को भारत के दौरे पर आने वाले हैं, जहां वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। इस उच्चस्तरीय मुलाकात से ठीक पहले रूस ने एक बड़े क़दम की ओर बढ़ते हुए भारत के साथ लंबित पड़े सैन्य-लॉजिस्टिक्स समझौते Reciprocal Exchange of Logistics Agreement (RELOS) को मंजूरी देने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। रूसी सरकार ने इस समझौते के मसौदे को अपनी संसद की रैटीफ़िकेशन प्रणाली में शामिल कर लिया है, जिसके बाद स्टेट ड्यूमा में इसके अनुमोदन पर विचार-विमर्श चल रहा है। यह संकेत साफ है कि मास्को इस समझौते को औपचारिक रूप से लागू करने के लिए तैयार है और इसे भारत के साथ द्विपक्षीय सैन्य सहयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।

RELOS के लागू होने पर भारत और रूस की सेनाओं के बीच सामरिक-लॉजिस्टिक सहयोग को नया ढांचा मिलेगा। इस समझौते के तहत दोनों देशों की नौसेना, वायुसेना और थलसेना एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों, पोर्ट, एयरबेस और लॉजिस्टिक सुविधाओं का मानकीकृत तरीके से उपयोग कर सकेंगी। इससे संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण मिशन, मानवीय सहायता अभियानों, आपदा राहत कार्यों और विशेष परिस्थितियों में आवश्यक सैन्य तैनाती को तकनीकी रूप से सुगम बनाया जा सकेगा। यह मॉडल भारत के अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित कई देशों के साथ पहले से मौजूद लॉजिस्टिक एक्सचेंज समझौतों जैसा ही होगा, लेकिन रूस के साथ यह समझौता इसलिए अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग दशकों से मजबूत और भरोसेमंद रहा है।

रूस द्वारा RELOS को आगे बढ़ाने की पहल को भारत-रूस संबंधों की सकारात्मक दिशा का संकेत माना जा रहा है। मौजूदा वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियों—विशेषकर यूक्रेन संघर्ष, पश्चिमी देशों के दबाव और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों—के बीच मास्को का यह कदम दर्शाता है कि वह भारत को अपनी सामरिक प्राथमिकताओं में शीर्ष पर रखता है। वहीं भारत भी रूस को ऊर्जा, रक्षा, अंतरिक्ष और तकनीक क्षेत्रों में एक विश्वसनीय दीर्घकालिक साझेदार के रूप में देखता है। पुतिन के आगामी भारत दौरे में RELOS के अलावा रक्षा उपकरण, ऊर्जा सहयोग, व्यापार विस्तार, बहुपक्षीय मुद्दों और वैश्विक सुरक्षा से जुड़े विषयों पर कई नए समझौते और घोषणाएँ सामने आने की संभावना है।

कुल मिलाकर, पुतिन का यह दौरा और उसकी पृष्ठभूमि में RELOS की प्रगति दोनों देशों के बीच बढ़ती रणनीतिक निकटता का स्पष्ट संदेश देती है। यदि यह समझौता मंजूर हो जाता है, तो भारत और रूस के सैन्य संबंध न केवल परिचालन स्तर पर और मजबूत होंगे, बल्कि एशिया के सुरक्षा परिदृश्य में भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। यह कदम दिखाता है कि वैश्विक अस्थिरताओं के बावजूद भारत-रूस साझेदारी आज भी सामरिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है।

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