तेलंगाना में होने वाले ग्राम पंचायत चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल गर्माता जा रहा है। इसी क्रम में केंद्रीय मंत्री और करिमनगर के भाजपा सांसद बंडी संजय कुमार का एक बड़ा बयान चर्चा में है। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र की ग्राम पंचायतों को संबोधित करते हुए घोषणा की कि यदि किसी भी पंचायत में भाजपा समर्थित सरपंच उम्मीदवार जीत दर्ज करता है, तो वह उस पंचायत को तुरंत 10 लाख रुपये की विकास सहायता उपलब्ध कराएँगे। यह घोषणा उन्होंने स्थानीय कार्यक्रमों और जनसभाओं में की, जिसे लेकर राजनीतिक हलकों में तेज प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं।
बंडी संजय कुमार ने कहा कि उनका उद्देश्य अपने संसदीय क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में आधारभूत सुविधाओं और विकास को गति देना है। उनके अनुसार, भाजपा समर्थित प्रतिनिधि जीतने पर पंचायतों को सड़क, पेयजल, स्ट्रीट लाइट, और समुदायिक भवन जैसी योजनाओं के लिए सीधे धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह राशि MPLADS (सांसद विकास निधि) के तहत दी जाएगी या किसी अन्य फंडिंग व्यवस्था के आधार पर, लेकिन रिपोर्टों में संकेत मिले हैं कि वह अपनी सांसद निधि के माध्यम से इसका प्रावधान करने की तैयारी में हैं।
तेलंगाना राज्य चुनाव आयोग ने ग्राम पंचायत चुनावों की तिथियाँ तीन चरणों में घोषित की हैं—11, 14 और 17 दिसंबर। ऐसे में चुनावी माहौल तेज़ है और सभी दल स्थानीय स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं। इस पृष्ठभूमि में बंडी संजय की 10 लाख रुपये की पेशकश को विपक्षी दलों ने चुनावी प्रलोभन करार दिया है। विपक्ष का कहना है कि इस तरह की प्रत्यक्ष वित्तीय घोषणाएँ आदर्श आचार संहिता के नियमों के खिलाफ हैं और मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश हैं।
कानूनी तौर पर भी यह मुद्दा महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय चुनाव कानून में मतदाताओं को आर्थिक लाभ का वादा करना “भ्रष्ट प्रथा” की श्रेणी में आ सकता है। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश और Representation of the People Act की धाराएँ ऐसे मामलों में स्पष्ट प्रतिबंध लगाती हैं। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह वादा चुनावी अवधि के दौरान लागू करने या घोषित करने की कोशिश हुई, तो चुनाव आयोग इस पर संज्ञान ले सकता है।
घोषणा के बाद यह मामला सोशल मीडिया और स्थानीय राजनीति में तेजी से चर्चा का विषय बन गया है। भाजपा के समर्थक इसे ग्रामीण विकास की दिशा में बड़ा कदम बता रहे हैं, जबकि विरोधी दल इसे चुनावी लाभ के लिए किया गया भावनात्मक और वित्तीय प्रभाव का प्रयास बता रहे हैं। अब सबकी नजर चुनाव आयोग, जिला प्रशासन और भाजपा की आधिकारिक प्रतिक्रिया पर है कि यह घोषणा व्यवहारिक रूप से कैसे आगे बढ़ाई जाती है या चुनावी नियमों की कसौटी पर किस प्रकार परखी जाती है।













