सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बढ़ रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ और साइबर ठगी के मामलों की गंभीरता को देखते हुए इनकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंपने की संभावना पर सहमति जताई है। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों का दायरा अब केवल एक राज्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इनकी जड़ें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैली हुई हैं। इसलिए इन अपराधों की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए ताकि अलग-अलग राज्यों में दर्ज मामलों को एक साथ जोड़कर ठोस कार्रवाई की जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जिसमें दर्ज एफआईआर की संख्या, जांच की वर्तमान स्थिति और की गई कार्रवाई का विवरण शामिल होगा। अदालत का मानना है कि इन आंकड़ों के आधार पर यह तय किया जा सकेगा कि क्या देशभर की जांच को एक केंद्रीय स्तर पर एकीकृत करना अधिक प्रभावी रहेगा।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सीबीआई से यह भी कहा कि वह डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी से निपटने के लिए एक समन्वित जांच योजना (Probe Plan) तैयार करे। अदालत ने यह जानना चाहा कि क्या सीबीआई के पास इस तरह के अत्याधुनिक साइबर अपराधों की जांच के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता और फॉरेंसिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। यदि नहीं, तो सीबीआई को यह भी बताना होगा कि उसे किन अतिरिक्त संसाधनों या विशेषज्ञों की जरूरत होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि कई मामलों में ठग विदेशी ठिकानों, विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से काम कर रहे हैं। ऐसे में, एक केंद्रीय एजेंसी के माध्यम से जांच करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग स्थापित करना और अपराधियों तक पहुँचना आसान होगा।
अदालत ने आगे कहा कि हाल के महीनों में ‘डिजिटल अरेस्ट’ से जुड़े कई मामले सामने आए हैं, जिनमें अपराधी सरकारी या न्यायिक संस्थानों का नाम लेकर लोगों को डराते हैं, वीडियो कॉल या फर्जी पहचान के ज़रिए उन्हें धमकाते हैं और फिर ऑनलाइन माध्यमों से पैसे वसूल लेते हैं। कई पीड़ितों को इन धोखाधड़ियों में लाखों से लेकर करोड़ों रुपये तक का नुकसान झेलना पड़ा है। अदालत का मानना है कि यदि इस तरह के मामलों की जांच सीबीआई जैसी एजेंसी को सौंपी जाती है, तो इन अपराधों के नेटवर्क का व्यापक खुलासा हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, ताकि अगले चरण में सीबीआई को जांच की औपचारिक जिम्मेदारी सौंपी जा सके। साथ ही, अदालत ने आम नागरिकों को भी सतर्क रहने की सलाह दी है। लोगों से कहा गया है कि वे किसी भी अज्ञात कॉल, वीडियो कॉल या संदेश पर भरोसा न करें, विशेषकर जब सामने वाला व्यक्ति खुद को पुलिस, कोर्ट या सरकारी अधिकारी बताकर डराने की कोशिश करे। ऐसे किसी भी संदिग्ध मामले की सूचना तुरंत स्थानीय साइबर पुलिस या संबंधित थाने में दर्ज करानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख यह दर्शाता है कि डिजिटल युग में बढ़ते साइबर अपराधों से निपटने के लिए अब एकीकृत और तकनीकी रूप से सक्षम तंत्र की आवश्यकता है, जिससे देशभर के नागरिकों को ऐसे जालसाजों से बचाया जा सके।













