मौद्रिक नीति अपडेट: RBI ने ब्याज दरें कम कीं, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की कोशिश

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भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने 5 दिसंबर 2025 को अपनी तीन दिवसीय बैठक के बाद नीतिगत रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती करते हुए इसे 5.25 प्रतिशत पर ला दिया। यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया, जबकि नीति का रुख “न्यूट्रल” ही रखा गया। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा के अनुसार हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में लगातार नरमी और आर्थिक वृद्धि में स्थिर सुधार ने समिति को ब्याज दरों में राहत देने का अवसर दिया। दरों में कमी का उद्देश्य कर्ज को सस्ता बनाकर बाजार में मांग को बढ़ाना और निवेश को गति देना है।

रेपो दर में कटौती के साथ ही केंद्रीय बैंक ने वित्तीय प्रणाली में तरलता बढ़ाने के लिए कई बड़े कदम भी उठाए। RBI ने इस महीने 1 लाख करोड़ रुपये तक के सरकारी बॉन्ड खरीदी (OMO) और 5 अरब डॉलर के डॉलर-रुपया स्वैप की घोषणा की है, ताकि बैंकिंग प्रणाली में नकदी की उपलब्धता बनी रहे और ब्याज दरों का प्रभाव तेज़ी से ग्राहकों तक पहुंच सके। इन कदमों के बाद सरकारी बॉन्ड यील्ड में गिरावट और शेयर बाजार में सीमित बढ़त देखने को मिली, क्योंकि निवेशकों ने इसे वृद्धि-समर्थक नीति के रूप में देखा।

केंद्रीय बैंक ने आगामी वित्त वर्ष के आर्थिक अनुमानों में भी बदलाव किया है। RBI ने FY26 के लिए GDP वृद्धि का अनुमान बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत कर दिया, जबकि मुद्रास्फीति का अनुमान घटाकर लगभग 2 प्रतिशत कर दिया है। इन संशोधनों से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था मजबूत गति से आगे बढ़ रही है और महंगाई अब नियंत्रण में है, जिससे भविष्य में भी नीतिगत राहत की संभावना बनी रहती है।

रेपो दर घटने से आम उपभोक्ताओं की EMI पर भी असर पड़ेगा, हालांकि बैंक कितनी कटौती ग्राहकों तक पहुंचाते हैं, यह उनकी अपनी नीति और बेंचमार्क दरों पर निर्भर करेगा। यदि बैंक पूरी 0.25 प्रतिशत कटौती को पास करते हैं तो होम, ऑटो और पर्सनल लोन की EMI में स्पष्ट कमी आ सकती है। उदाहरण के तौर पर 50 लाख रुपये के 20 साल की अवधि वाले होम लोन पर ग्राहक को हर महीने लगभग 700 से 800 रुपये की बचत संभव है। हालांकि, फिक्स्ड रेट लोन वाले उपभोक्ताओं को इसका तात्कालिक लाभ नहीं मिलेगा।

RBI का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक बाजार अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन घरेलू अर्थव्यवस्था ने मजबूत प्रदर्शन दिखाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि रेपो दर कटौती से उपभोक्ता मांग बढ़ेगी और साथ ही निवेश गतिविधियों में नई ऊर्जा आएगी। नीति निर्माताओं की नज़र अब आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति और वित्तीय बाजारों की स्थिरता पर रहेगी, जिसके आधार पर आगे की ब्याज दर नीति तय होगी।

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