पुतिन भारत दौरा: व्यापार एजेंडा से तेल सप्लाई तक—क्या है दोनों देशों की बड़ी रणनीति

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का 4–5 दिसंबर 2025 का भारत दौरा रणनीतिक, आर्थिक और ऊर्जा सहयोग को नई दिशा देने वाला माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आयोजित विशेष रात्रिभोज के साथ शुरू हुआ यह दौरा दोनों देशों के बीच 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा है। हाइड्राबाद हाउस में द्विपक्षीय वार्ता, उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों की बैठकें और कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर इस दौरे की मुख्य विशेषताएँ हैं। इसके साथ ही पुतिन राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि भी देंगे, जिसे भारत-रूस संबंधों की भावनात्मक विरासत का महत्वपूर्ण प्रतीक माना जा रहा है।

इस दौरे में सबसे बड़ा फोकस व्यापारिक संतुलन और आर्थिक विविधीकरण पर रहा। रूस चाहता है कि भारत उसके ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में साझेदारी को और गहरा करे, जबकि भारत मशीनरी, दवाइयों, कृषि उत्पादों और आईटी सेवाओं का निर्यात बढ़ाने पर जोर दे रहा है। दोनों देशों के बीच रुपये-रूबल व्यापार प्रणाली को व्यवहारिक बनाने के प्रयास चर्चा के केंद्र में रहे, क्योंकि मौजूदा भुगतान व्यवस्था में तकनीकी बाधाएँ और वैश्विक प्रतिबंधों से उपजा दबाव कई लेन-देन को प्रभावित करता है। रूस की ओर से डिफर्ड पेमेंट यानी किश्तों में भुगतान प्रणाली और द्विपक्षीय मुद्रा प्रणाली को मजबूती देने पर जोर दिया जा रहा है।

ऊर्जा क्षेत्र, विशेषकर कच्चे तेल की आपूर्ति, इस दौरे का सबसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। भारत वर्तमान में रूस से बड़ी मात्रा में समुद्री तेल खरीद रहा है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में लगातार सस्ती कीमतें मिल रही हैं। पुतिन का उद्देश्य भारत के साथ ऊर्जा व्यापार को लंबे समय तक स्थिर रखना है, जबकि भारत चाहता है कि भुगतान बाधाएँ कम हों और सप्लाई निर्बाध बनी रहे। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव के बीच भारत ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अपनी कूटनीतिक संतुलन नीति जारी रखे हुए है, और यह मुलाकात उसी संतुलन को और मजबूत करने का मंच बनी।

इस बार श्रमिक आवाजाही और भारत–रूस रोजगार सहयोग भी चर्चा का महत्वपूर्ण विषय रहा। पुतिन की बैठक के तुरंत बाद रूस के सबसे बड़े बैंक Sberbank ने भारतीय कामगारों को रूस में रोजगार दिलाने और भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर आयात बढ़ाने की रणनीति का ऐलान किया। रूस में तेजी से बढ़ रही श्रम कमी को देखते हुए भारत से कुशल और अकुशल दोनों तरह के कामगारों के लिए अवसर बढ़ सकते हैं। यह पहली बार है जब भारत–रूस संबंधों में श्रमिक सहयोग को व्यवस्थित और संस्थागत रूप देने की पहल सामने आई है।

रक्षा सहयोग भी वार्ता का एक अहम हिस्सा बना रहा। मौजूदा परियोजनाएँ—जैसे एस-400 मिसाइल सिस्टम, ब्रह्मोस विस्तार कार्यक्रम, और लड़ाकू विमान आधुनिकीकरण—पर प्रगति की समीक्षा की गई, जबकि भविष्य की रक्षा खरीद पर भी दोनों नेताओं ने चर्चा की। वैश्विक तनाव, यूक्रेन विवाद और पश्चिमी देशों की नीतियों के बीच यह रक्षा साझेदारी भारत के लिए महत्वपूर्ण है, हालांकि नई खरीद में भारत अपनी “डायवर्सिफिकेशन” नीति को भी ध्यान में रख रहा है।

कुल मिलाकर, पुतिन का यह भारत दौरा व्यापार, ऊर्जा, रक्षा, श्रम और भू-राजनीतिक मुद्दों में नए अध्याय खोलने वाला साबित हुआ है। दोनों देशों ने इस अवसर को रिश्तों को व्यापक, बहु-आयामी और आने वाले दशक की जरूरतों के अनुरूप ढालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। यह दौरा सिर्फ पारंपरिक साझेदारी का विस्तार नहीं, बल्कि भारत और रूस के बीच नए युग के आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों की नींव भी माना जा रहा है।

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