भारत–ईयू FTA: राजनीतिक स्तर पर बढ़ी सक्रियता, वार्ता अंतिम चरण में

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भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच मुक्त व्यापार समझौते (India–EU FTA) को लेकर बातचीत अब निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुकी है। वार्ता को राजनीतिक स्तर पर प्राथमिकता मिलने के बाद लगभग 40 सदस्यीय यूरोपीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा है, जो शेष विषयों पर गहन चर्चा करेगा। दोनों पक्ष इस समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने की कोशिश में हैं और इसके लिए अब उच्च-स्तरीय संवाद लगातार जारी है। जानकारी के अनुसार FTA के कुल 23 चैप्टर में से लगभग 11 चैप्टर पर सिद्धांत रूप से सहमति बन चुकी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वार्ता आधे रास्ते से आगे निकल चुकी है। हालांकि, कुछ संवेदनशील विषय जैसे ऑटो सेक्टर में बाजार पहुंच, सेवाओं का व्यापार, निवेश सुरक्षा ढाँचा, स्टील और तकनीकी व्यापार-बाधाओं से जुड़े मुद्दे अभी भी समाधान की प्रतीक्षा में हैं। इसके अलावा यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) भी चर्चाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि भारत इस व्यवस्था के घरेलू उद्योगों पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंतित है।

भारत और EU के बीच मौजूदा व्यापार लगभग 130 अरब डॉलर से अधिक के स्तर पर है, इसलिए दोनों पक्ष इस समझौते को आर्थिक अवसरों की नई दिशा के रूप में देख रहे हैं। माना जा रहा है कि FTA लागू होने पर विनिर्माण, सेवाओं, निवेश प्रवाह और निर्यात क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल सकती है। हालांकि कृषि एवं कुछ संवेदनशील उत्पादों पर बाजार खोलने को लेकर दोनों पक्षों को राजनीतिक संतुलन बनाना होगा। हाल के दौर में वार्ता की गति काफी बढ़ी है और रिपोर्टों के अनुसार कानूनी व तकनीकी टीमों को समयबद्ध लक्ष्य पूरा करने के लिए छुट्टियाँ तक टालने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समझौते को तय समय-सीमा के भीतर पूरा करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है।

यदि शेष कठिन मुद्दों पर व्यापक सहमति बन पाती है, तो भारत–EU FTA न केवल द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति-शृंखला, तकनीकी सहयोग, हरित ऊर्जा परिवर्तन और उद्योग मानकों के नए अवसर भी खोल सकता है। समग्र रूप से यह समझौता एशिया–यूरोप संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, लेकिन इसके अंतिम रूप का निर्धारण आने वाले दौरों की जटिल वार्ताओं पर निर्भर करेगा।

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