सरकार ने संसद में खुलासा किया है कि पिछले पाँच वित्तीय वर्षों में देश में कुल 2,04,268 निजी कंपनियाँ बंद हुई हैं। ये बंद होना अलग-अलग कारणों से हुआ—कई कंपनियाँ विलय की प्रक्रिया में समाहित हुईं, कुछ कानूनी रूप से भंग की गईं और बड़ी संख्या में कंपनियों को Companies Act के तहत रिकॉर्ड से हटाया गया। वर्षवार आंकड़ों के अनुसार 2020-21 से 2024-25 के बीच कंपनियों के बंद होने की संख्या में महत्वपूर्ण उतार–चढ़ाव देखा गया है। सबसे अधिक कंपनियाँ 2022-23 में बंद हुईं, जब 83,452 प्राइवेट कंपनियाँ रिकॉर्ड से गायब हो गईं, जबकि 2021-22 में यह संख्या 64,054 रही। 2024-25 में 20,365 और 2023-24 में 21,181 कंपनियाँ बंद दर्ज की गईं, जबकि 2020-21 में यह संख्या 15,216 थी। इन आंकड़ों ने निजी क्षेत्र में व्यापारिक वातावरण, अनुपालन और आर्थिक दबावों पर नई चर्चाओं को जन्म दिया है।
संसद में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में यह भी स्पष्ट किया गया कि इतनी बड़ी संख्या में कंपनियों के बंद होने के बावजूद सरकार के पास कर्मचारियों के पुनर्वास या वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध कराने की कोई प्रस्तावित योजना नहीं है। इस जवाब ने विशेष रूप से उन कर्मचारियों की स्थिति को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं जो छोटी या मध्यम निजी कंपनियों में काम करते थे और जिनके पास नौकरी छूटने के बाद सीमित विकल्प रह जाते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कंपनियों का बंद होना हमेशा आर्थिक विफलता नहीं दर्शाता; कई बार यह लेखा-प्रक्रिया, अनुपालन या संरचनात्मक सुधार का हिस्सा होता है, लेकिन वास्तविक कर्मचारियों पर पड़ने वाला प्रभाव अक्सर अनदेखा रह जाता है। बड़ी संख्या में कंपनियों के struck off होने से इस बात पर भी जोर पड़ा है कि सरकार और नियामक संस्थाओं को कंपनी बंदी के कारणों की पारदर्शी श्रेणीकरण और निगरानी की दिशा में और अधिक कदम उठाने चाहिए।
औद्योगिक विश्लेषकों के अनुसार, हालिया आंकड़े संकेत देते हैं कि निजी क्षेत्र में व्यापारिक स्थिरता को मजबूत बनाने, छोटे उद्यमों के लिए अनुपालन आसान करने और कर्मचारियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहु-स्तरीय नीति सुधार आवश्यक हैं। जिस प्रकार कर्मचारियों के लिए कोई पुनर्वास नीति मौजूद नहीं है, उसे देखते हुए रोजगार मंत्रालय और उद्योग निकायों के बीच सामंजस्य बनाकर वैकल्पिक रोजगार अवसर, कौशल-विकास और त्वरित सहायता तंत्र विकसित करना समय की जरूरत बन गया है। सरकार और नियामक निकायों के बीच बेहतर डेटा पारदर्शिता से न केवल कंपनियों की वास्तविक स्थिति स्पष्ट होगी बल्कि अचानक बंद होने वाली कंपनियों के कर्मचारी भी अधिक सुरक्षित भविष्य की योजना बना पाएंगे।












