फ्लाइट टिकट कैंसिलेशन आसान: सरकार इन-बिल्ट इंश्योरेंस और फुल मेडिकल रिफंड मॉडल पर काम कर रही

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भारत में हवाई यात्रा से जुड़ी नीतियों में बड़े बदलाव की तैयारी की जा रही है, जिसके तहत टिकट रद्द करने और धनवापसी (रिफंड) की प्रक्रिया को अधिक सरल, पारदर्शी और यात्री हित में बनाया जाएगा। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एक मसौदा तैयार किया है जिसमें यात्रियों को टिकट कैंसिलेशन के मामलों में राहत देने वाली कई महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ शामिल हैं। इनमें 48 घंटे की ‘फ्री लुक-इन’ अवधि, रिफंड पूरा करने की निश्चित समय-सीमा और रद्दीकरण शुल्क में पारदर्शिता को अनिवार्य बनाए जाने जैसी बातें प्रमुख हैं। प्रस्तावित नियमों का उद्देश्य यह है कि यात्रियों को अनावश्यक शुल्क, देरी और जटिल प्रक्रियाओं से मुक्ति मिले तथा वे जरूरत पड़ने पर बिना नुकसान के अपनी यात्रा योजनाएँ बदल सकें।

इन प्रस्तावों में सबसे अहम बदलाव मेडिकल इमरजेंसी से जुड़े मामलों के लिए है। यदि किसी यात्री या उसके परिवार में अचानक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है और इसके चलते टिकट रद्द करना पड़ता है, तो एयरलाइंस यात्रियों को पूरा रिफंड देने पर सहमत होंगी। ऐसी परिस्थितियों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट और अस्पताल द्वारा जारी प्रमाण पर्याप्त माने जाएंगे। सरकार और एयरलाइंस के बीच इस बात पर सहमति बन रही है कि संवेदनशील स्थितियों में यात्रियों से कोई रद्दीकरण शुल्क न लिया जाए, ताकि वे आर्थिक दबाव से बच सकें।

इसके अलावा सरकार हवाई टिकटों में इन-बिल्ट ट्रैवल इंश्योरेंस शामिल करने पर भी काम कर रही है। इस योजना का उद्देश्य ऐसा ढांचा तैयार करना है जिसमें यात्रा अंतिम समय में रद्द करने पर भी यात्रियों को 70–80% तक राशि वापस मिल सके। कई रिपोर्टों में बताया गया है कि यह बीमा इतनी लचीली शर्तों के साथ होगा कि यदि यात्रा उड़ान से कुछ घंटे पहले भी रद्द करनी पड़े, तब भी आर्थिक क्षति काफी हद तक कम हो जाएगी। ऐसा माना जा रहा है कि बीमा का छोटा प्रीमियम एयरलाइंस अपनी टिकट-प्राइस संरचना में समायोजित करेंगी, जिससे यात्रियों पर कोई अतिरिक्त शुल्क न पड़े।

ड्राफ्ट पॉलिसी में रिफंड समयसीमा को भी स्पष्ट रूप से तय करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत एयरलाइंस को निश्चित अवधि के भीतर रिफंड प्रोसेस पूरा करना अनिवार्य होगा। ऑनलाइन पोर्टलों या ट्रैवल एजेंटों के माध्यम से खरीदे गए टिकटों में भी रिफंड की प्राथमिक जिम्मेदारी एयरलाइंस पर ही रहेगी, ताकि यात्रियों को एजेंट और एयरलाइन के बीच चक्कर न काटने पड़ें। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रिफंड प्रक्रिया सरल, तेज और सीधे यात्री को मिलने वाली सुविधा बने।

सरकार के अनुसार ये बदलाव अभी मसौदा चरण में हैं और अंतिम नियमों को लागू करने से पहले सार्वजनिक सुझाव, उद्योग से परामर्श और तकनीकी सुधारों पर विचार किया जाएगा। हालांकि समग्र रूप से प्रस्तावित परिवर्तन यह संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हवाई यात्रियों के लिए टिकट बुकिंग और रद्दीकरण दोनों ही प्रक्रियाएँ पहले से कहीं अधिक सुरक्षित, सुविधाजनक और लाभकारी होने जा रही हैं। नए नियम लागू होने के बाद यात्रियों को मेडिकल दस्तावेज, रिफंड पॉलिसी, बीमा कवरेज और कैंसिलेशन शर्तों पर अधिक स्पष्ट और व्यवस्थित जानकारी उपलब्ध होगी, जो उन्हें यात्रा योजना को अधिक आत्मविश्वास के साथ प्रबंधित करने में मदद करेगी।

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