PM मोदी ने जी20 में रखा नया विज़न: पारंपरिक ज्ञान से लेकर वैश्विक स्वास्थ्य तक 4 बड़े प्रस्ताव

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दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक विकास के मौजूदा ढांचे पर गहन पुनर्विचार करने की अपील की और दुनिया को एक ऐसे मॉडल की ओर बढ़ने का संदेश दिया, जो समावेशी होने के साथ-साथ टिकाऊ भी हो। अपने संबोधन की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि अफ्रीका में पहली बार आयोजित हो रहा यह शिखर सम्मेलन ऐतिहासिक है, क्योंकि यह अवसर वैश्विक दक्षिण की वास्तविक चिंताओं को दुनिया के सामने रखने का मजबूत मंच बन रहा है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि पारंपरिक आर्थिक पैमानों से आगे बढ़कर विकास का ऐसा मानक तय किया जाए जिसमें मानव हित, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय संतुलन और नवाचार का समावेश हो।

प्रधानमंत्री ने दुनिया के सामने चार व्यापक पहलों का खाका पेश किया। इनमें पहली पहल वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार तैयार करने की थी, ताकि दुनिया भर में फैले प्राचीन और स्थानीय ज्ञान को एक व्यवस्थित मंच मिल सके। मोदी का मानना है कि पारंपरिक ज्ञान—चाहे वह आयुर्वेद हो, जनजातीय चिकित्सा पद्धतियाँ हों, या कृषि से जुड़ी लोक तकनीकें—आज भी स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीवनशैली के स्तर पर अद्भुत योगदान दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि इस ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर बड़े पैमाने पर मानवता के हित में उपयोग किया जा सकता है और यह विविध देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु भी बनेगा।

उनकी दूसरी पहल अफ्रीका के कौशल विकास से जुड़ी थी, जिसे Africa Skills Multiplier Initiative नाम दिया गया। मोदी ने कहा कि अफ्रीका दुनिया के सबसे युवा महाद्वीपों में से एक है, और वहां के युवाओं को यदि आधुनिक तकनीकी कौशल, डिजिटल प्रशिक्षण और उद्यमिता का अवसर मिले, तो पूरा क्षेत्र दुनिया के आर्थिक विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर डिजिटल शिक्षा प्लेटफॉर्म, स्किल ट्रेनिंग सेंटर और उद्योग आधारित कार्यक्रमों को विकसित करने में सहयोग देगा, जिससे लाखों युवाओं को रोजगार और व्यवसाय के अवसर उपलब्ध हो सकें।

प्रधानमंत्री द्वारा घोषित तीसरी पहल स्वास्थ्य सुरक्षा से संबंधित थी। कोविड-19 महामारी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया ने देखा कि स्वास्थ्य संकट केवल एक देश तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसके प्रभाव वैश्विक स्तर पर दिखाई देते हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने Global Healthcare Response Team बनाने का प्रस्ताव रखा। यह टीम महामारी जैसी आपात स्थितियों, संक्रामक रोगों के फैलाव और वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों पर तेज, समन्वित और प्रभावी प्रतिक्रिया दे सकेगी। उन्होंने कहा कि इस तंत्र में साझा प्रोटोकॉल, उपचार सुविधाएँ, वैक्सीन की आपातकालीन आपूर्ति तथा सीमापार सहयोग की व्यवस्था शामिल की जानी चाहिए।

इसके बाद प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से नशीले पदार्थों और आतंकवाद के गठजोड़ पर। उन्होंने कहा कि ड्रग-ट्रैफिकिंग और आतंकी नेटवर्क एक-दूसरे को मजबूती देते हैं और यह वैश्विक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने देशों के बीच मजबूत सूचना आदान-प्रदान, सीमा सुरक्षा सहयोग और वित्तीय लेनदेन की निगरानी पर आधारित एक संयुक्त पहल बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि जब तक दुनिया इस समस्या का सामूहिक समाधान नहीं ढूंढती, तब तक इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों को भी झेलना पड़ेगा।

अपने संबोधन के दौरान मोदी ने यह स्पष्ट किया कि दुनिया जिन जटिल चुनौतियों का सामना कर रही है—जैसे जलवायु परिवर्तन, ऋण संकट, ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी असमानता—उन्हें किसी एक देश की क्षमता से नहीं सुलझाया जा सकता। इसलिए एक ऐसे ढांचे की आवश्यकता है जो सहयोग, न्याय और साझेदारी की भावना पर आधारित हो। उन्होंने भारत की परंपरागत अवधारणा “वसुधैव कुटुम्बकम” का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सिद्धांत न केवल भारतीय दर्शन है, बल्कि वैश्विक विकास का एक प्रभावी मार्ग भी हो सकता है। उनका संदेश साफ था कि दुनिया को आज ऐसी नीतियों की जरूरत है, जिनमें केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि मानवता के प्रति संवेदनशीलता भी शामिल हो।

शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी कीं और भारत की भूमिका को वैश्विक दक्षिण की आवाज़ के रूप में मजबूत करने पर बल दिया। उन्होंने अन्य देशों के नेताओं से बातचीत में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के ऋण संकट, जलवायु अनुकूल तकनीक की उपलब्धता और स्वास्थ्य-प्रत्युत्तर प्रणाली को मजबूत करने जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता जताई। भारत ने इन बैठकों में यह भी स्पष्ट किया कि उसकी प्राथमिकताएँ केवल राष्ट्रीय हित तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह वैश्विक दक्षिण के देशों की सामूहिक प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है।

जोहानसबर्ग में आयोजित यह जी20 सम्मेलन “सॉलिडैरिटी, इक्विटी और सस्टेनेबिलिटी” की थीम पर आधारित था, जिसका उद्देश्य ऐसे विकास मॉडल को प्रोत्साहित करना है जो न्यायसंगत, संतुलित और भविष्य के लिए टिकाऊ हो। प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव इन्हीं लक्ष्यों के अनुरूप दिखाई दिए। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दुनिया इन सुझावों को गंभीरता से अपनाती है और राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाती है, तो आने वाले वर्षों में वैश्विक सहयोग और विकास के ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है।

समग्र रूप से देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन ना सिर्फ भारत की नीति दिशा को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वैश्विक दक्षिण की भावनाओं और आकांक्षाओं को लंबे समय तक अनदेखा नहीं किया जा सकता। पारंपरिक ज्ञान से लेकर स्वास्थ्य सुरक्षा और कौशल विकास तक, मोदी के प्रस्ताव दुनिया को अधिक संतुलित, न्यायपूर्ण और सहयोगात्मक भविष्य की ओर ले जाने की दिशा में एक मजबूत कदम माने जा रहे हैं।

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