ऑपरेशन सिंदूर: रिपोर्ट में खुलासा—चीन ने पाकिस्तान को दिए उन्नत हथियार, संघर्ष का किया ‘लाइव टेस्ट’, राफेल पर चलाया भ्रामक अभियान

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हाल में सामने आई एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि मई महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीमित लेकिन संवेदनशील टकराव—जिसे मीडिया में “ऑपरेशन सिंदूर” के नाम से जाना गया—का चीन ने रणनीतिक रूप से इस्तेमाल किया। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इस पूरे घटनाक्रम को अपने उन्नत हथियारों के वास्तविक युद्ध में परिक्षण (लाइव टेस्टिंग) के अवसर के रूप में देखा और पाकिस्तान को अपनी कई आधुनिक प्रणालियाँ उपलब्ध कराईं। इनमें HQ-9 जैसी वायु रक्षा प्रणाली, PL-15 श्रेणी की हवा-से-हवा मार करने वाली मिसाइलें, और J-10 लड़ाकू विमान शामिल बताए गए हैं। रिपोर्ट का कहना है कि चीन इन हथियारों की क्षमता, प्रतिक्रिया समय और वास्तविक युद्ध-परिस्थिति में उनके प्रदर्शन से संबंधित डेटा हासिल करना चाहता था, जिसे बाद में उसने प्रचार सामग्री में बदलकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी हथियार बिक्री को और मजबूत करने की कोशिश की।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि संघर्ष की घटनाओं के बाद चीन ने एक आक्रामक सूचनात्मक अभियान चलाया, ताकि वैश्विक स्तर पर फ्रांस निर्मित राफेल लड़ाकू विमान की विश्वसनीयता को कमजोर किया जा सके। विश्लेषणों में कहा गया है कि चीनी डिजिटल नेटवर्क, सोशल प्लेटफॉर्म और कुछ संबद्ध मीडिया समूहों ने राफेल के प्रदर्शन पर सवाल उठाने वाले संदेश प्रसारित किए। यहां तक कि कुछ मंचों पर कथित तौर पर नकली तस्वीरें और जेनरेटिव विजुअल्स साझा किए गए, जिनका उद्देश्य राफेल से संबंधित भ्रम पैदा करना था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस रणनीति का मकसद राफेल की छवि को नुकसान पहुँचाना और वैश्विक हथियार बाजार में प्रतिस्पर्धा को अपने पक्ष में मोड़ना था।

अमेरिका आधारित विश्लेषक समूहों ने यह भी जोड़ा कि चीन-पाकिस्तान सैन्य समन्वय का यह पैटर्न केवल तत्काल संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बड़े स्तर पर चल रहे उस भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है जिसमें बड़े देश छोटे क्षेत्रीय टकरावों का उपयोग अपने हथियारों की प्रभावशीलता सिद्ध करने के लिए करते हैं। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हथियार प्रणालियों की लाइव टेस्टिंग किसी भी संघर्ष को बहुआयामी और अधिक जटिल बना देती है, और इससे क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे पर दीर्घकालिक असर पड़ सकता है। कई विशेषज्ञों ने यह भी चेताया कि संघर्ष के बाद फैलने वाली प्रचार और भ्रामक सूचनाएँ रणनीतिक भ्रम का खतरा बढ़ाती हैं तथा नीति-निर्माताओं और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सामने सूचना-सत्यापन की नई चुनौतियाँ पैदा करती हैं।

कुल मिलाकर, रिपोर्ट के ये खुलासे यह संकेत देते हैं कि आधुनिक युद्ध केवल जमीन, हवा या साइबरस्पेस तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह हथियार-प्रचार, डिजिटल दुष्प्रचार और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा तक भी फैल चुका है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की भूमिका और उसके बाद चलाया गया कथित अभियान इस बात को दर्शाता है कि सामरिक घटनाओं का उपयोग भविष्य के हथियार सौदों और राजनीतिक प्रभाव को साधने के लिए किस तरह किया जा रहा है।

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