44 वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला 2025 के पहले वीकेंड पर बिहार पवेलियन में उमड़ी भीड़

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नई दिल्ली, 15 नवंबर 2025 : 44 वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला 2025 के पहले वीकेंड पर भारत मंडपम के हॉल नंबर 1 में साझीदार राज्य बिहार पवेलियन में आज काफी भीड़ देखी गई l बिहार पवेलियन के केंदीय कक्ष में लगी बिहार संग्रहालय की प्रदर्शनी में दिदारगंज यक्षी की प्रतिमा ने लोगों का मन मोहा लिया एवं आगंतुक सेल्फी एवं फोटो लेते दिखे l इसके अलावा बिहार म्यूजियम में लगे फास्टिंग बुद्धा, गणेश प्रतिमा, गांधी जी की प्रतिमा ने भी लोगों को आकर्षित किया l वहीं लोगों ने पवेलियन के स्टालों का परिभ्रमण करते हुए सिकी आर्ट, मिथिला पेंटिंग, सिल्क एवं हैंडलूम की शूट एवं साड़ी तथा हैंडीक्राफ्ट उत्पादों की जमकर खरीदारी की l

भारत की प्राचीन मूर्तिकला का अनमोल धरोहर मानी जाने वाली दिदारगंज यक्षी आज भी अपने अद्वितीय सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्व के कारण विश्वभर के शोधकर्ताओं और कला प्रेमियों का ध्यान आकर्षित कर रही है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व (मौर्य काल) की यह उत्कृष्ट प्रतिमा बिहार के पटना जिले के दिदारगंज क्षेत्र में मिली थी। वर्तमान में भारतीय कला के इतिहास में इसे सर्वोत्तम शिल्पकृतियों में गिना जाता है। विशेष बात यह है कि बिहार पवेलियन के सेन्ट्रल हॉल को एक मिनी “बिहार म्यूज़ियम” के रूप में तैयार किया गया है, और इसी में यह ऐतिहासिक मूर्ति प्रदर्शित की गई है।

पवेलियन डायरेक्टर संजय कुमार सिंह ने बताया कि अब हर कोई ट्रेड फेयर में पहुंचकर इस प्राचीन यक्षी मूर्ति को बेहद करीब से देख सकता है, जो इससे पहले केवल संग्रहालयों में ही देखने को मिलती थी। यह प्रस्तुति न केवल बिहार की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित कर रही है, बल्कि लोगों को 2300 साल पुराने भारतीय इतिहास से सीधे जोड़ रही है।

भारतीय पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि दिदारगंज यक्षी भारतीय मूर्तिकला के विकास को समझने का सर्वोत्तम स्रोत है। इसका सौंदर्य और शिल्प कौशल आज भी चौंकाने वाला है। दिदारगंज यक्षी न केवल बिहार की धरोहर है, बल्कि भारतीय सभ्यता की गौरवशाली कला का उज्ज्वल प्रमाण है l

यह प्रतिमा ट्रेड फेयर 2025 के बिहार पवेलियन में बने बिहार म्यूज़ियम में प्रदर्शित है, जहां आकर हर दर्शक इसकी भव्यता, नक्काशी और ऐतिहासिक महत्व को अनुभव कर सकता है। यह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक वैभव का जीवंत प्रतीक है।

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