कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर के एक हालिया लेख ने भारतीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। अपने लेख में थरूर ने देश की राजनीति में बढ़ती वंशवादी प्रवृत्ति को लोकतंत्र के लिए “गंभीर खतरा” बताया और कहा कि जब नेतृत्व योग्यता या जनता के समर्थन के बजाय पारिवारिक पहचान से तय होने लगे, तो राजनीति अपनी मूल भावना खो देती है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह समस्या केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं है, बल्कि लगभग हर बड़े राजनीतिक दल में यह प्रवृत्ति दिखाई देती है। थरूर ने लिखा कि अब समय आ गया है जब पार्टियों को “परिवार नहीं, प्रतिभा और प्रदर्शन” के आधार पर नेतृत्व चुनना चाहिए।
थरूर का यह बयान आते ही कांग्रेस के भीतर हलचल मच गई। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने नाराजगी जताई और कहा कि ऐसे बयान चुनावी समय में पार्टी की एकजुटता को प्रभावित कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व इस विवाद पर आंतरिक चर्चा कर रहा है और स्थिति को संभालने की कोशिश में है। कुछ नेताओं का कहना है कि थरूर के शब्दों से जनता के बीच गलत संदेश जा सकता है, जबकि कुछ का मत है कि इस तरह की बहस पार्टी को आत्ममंथन का अवसर देती है।
वहीं, भाजपा ने थरूर के बयान को हाथोंहाथ लिया और कांग्रेस पर निशाना साधा। भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए कहा कि थरूर ने “सच्चाई बोलने की हिम्मत दिखाई है।” एक भाजपा प्रवक्ता ने व्यंग्य करते हुए कहा कि “हम थरूर जी के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, क्योंकि जिस परिवार के खिलाफ वे बोले हैं, वह बदले की भावना रखता है।” भाजपा ने इसे कांग्रेस के भीतर गहराते असंतोष और परिवारवाद के प्रतीक के रूप में पेश किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि थरूर का यह बयान केवल एक व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के उस दर्द को उजागर करता है जो दशकों से राजनीति में जड़ जमा चुकी वंशवादी प्रवृत्तियों का परिणाम है। यह विवाद आने वाले समय में कांग्रेस के अंदर विचारधारात्मक बहस को और गहरा कर सकता है, वहीं भाजपा इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।













