बिहार चुनाव 2025: आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बुधवार को एक बड़ा चुनावी ऐलान किया, जिससे राज्य की राजनीति में नई हलचल मच गई है। उन्होंने कहा कि अगर बिहार में उनकी सरकार बनती है तो राज्य की ‘जीविका दीदियों’ यानी महिला स्व-सहायता समूहों से जुड़ी कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाएगा और उन्हें मासिक ₹30,000 का वेतन मिलेगा। तेजस्वी ने यह भी घोषणा की कि बिहार में काम कर रहे सभी संविदा कर्मियों (Contract Workers) को भी स्थायी कर्मचारी बनाया जाएगा, जिससे लाखों परिवारों को सीधा फायदा पहुंचेगा।
तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनकी पार्टी का लक्ष्य है कि “हर घर में एक सरकारी नौकरी” दी जाए, ताकि युवाओं को बेहतर रोजगार के अवसर मिल सकें। उन्होंने वादा किया कि उनकी सरकार बनने के 20 दिनों के भीतर इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे और संबंधित कानून या प्रशासनिक आदेश जारी किए जाएंगे। तेजस्वी ने कहा कि जीविका दीदियों का राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन उन्हें आज तक उचित मान्यता नहीं मिली। इसलिए आरजेडी सरकार आने पर उन्हें न सिर्फ सम्मान मिलेगा बल्कि उनके काम का आर्थिक मूल्य भी तय किया जाएगा।
तेजस्वी के इस ऐलान के बाद बिहार की राजनीति गर्मा गई है। सत्ता पक्ष के नेताओं ने इस घोषणा की व्यवहारिकता और वित्तीय पक्ष पर सवाल उठाए हैं, जबकि विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने इसे महिलाओं और संविदा कर्मियों के सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह योजना लागू होती है तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिला सशक्तिकरण के लिए एक बड़ा परिवर्तन साबित हो सकता है, हालांकि इसके लिए बजट और नीति ढांचे को स्पष्ट करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेजस्वी यादव की यह रणनीति राज्य के ग्रामीण और महिला मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश है। पिछले कुछ वर्षों में ‘जीविका’ कार्यक्रम के तहत लाखों महिलाओं ने स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाया है। ऐसे में तेजस्वी का यह वादा उन्हें एक सशक्त वर्ग के रूप में संबोधित करता है।
तेजस्वी यादव का यह ऐलान बिहार के चुनावी परिदृश्य को नया मोड़ दे सकता है। जहां एक ओर यह वादा रोजगार और सशक्तिकरण की उम्मीद जगाता है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठाता है कि क्या इतने बड़े पैमाने पर सरकारी दर्जा और वेतन देने के लिए राज्य की आर्थिक स्थिति तैयार है या नहीं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा बिहार की चुनावी बहस का केंद्र बनने वाला है।













