कर्नाटक की राजनीति इस समय एक नए विवाद के केंद्र में है, जहां राज्य के ग्रामीण विकास और आईटी मंत्री प्रियांक खरगे ने आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग उठाई है। खरगे ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर कहा कि सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, मंदिरों और अन्य सरकारी परिसरों में आरएसएस की शाखाओं और कार्यक्रमों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उनका तर्क है कि इन गतिविधियों के माध्यम से युवाओं और विद्यार्थियों के बीच राजनीतिक व वैचारिक प्रभाव फैलाया जा रहा है, जो संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ है।
इस मांग के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य के मुख्य सचिव को समीक्षा के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने इस विषय पर जो कदम उठाए हैं, उनका अध्ययन किया जाए और यह देखा जाए कि क्या कर्नाटक में भी उसी तरह की नीति लागू की जा सकती है। मुख्यमंत्री के इस निर्देश से संकेत मिलता है कि सरकार आरएसएस की गतिविधियों को लेकर प्रशासनिक और कानूनी पहलुओं पर विचार कर रही है।
हालांकि, यह मामला सामने आने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई। भाजपा नेताओं ने कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह कदम हिंदू संगठनों को निशाना बनाने की साजिश है। भाजपा का कहना है कि आरएसएस एक राष्ट्रसेवा संगठन है, जो सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है, इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है। वहीं, कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी सुझाव दिया कि ऐसे संवेदनशील मामलों में कोई भी निर्णय विस्तृत परामर्श और कानूनी राय के बाद ही लिया जाना चाहिए।
विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है, क्योंकि कर्नाटक में राजनीतिक माहौल पहले से ही गर्म है। आने वाले स्थानीय चुनावों और दक्षिण भारतीय राज्यों में बढ़ते राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच यह मुद्दा कांग्रेस और भाजपा के बीच एक बड़ा वैचारिक टकराव बन सकता है। फिलहाल, मुख्य सचिव की समीक्षा रिपोर्ट का इंतजार है, जिसके आधार पर सरकार आगे की कार्रवाई तय करेगी।













