लोकसभा में थरूर ने पेश किया मैरिटल रेप बिल, महिलाओं की सहमति को माना जाएगा कानूनन अधिकार

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लोकसभा में शुक्रवार को कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक महत्वपूर्ण निजी विधेयक पेश किया, जिसमें उन्होंने वैवाहिक संबंधों में सहमति की अवहेलना करने वाले यौन शोषण — यानी मैरिटल रेप — को अपराध की श्रेणी में लाने का प्रस्ताव रखा। थरूर ने कहा कि विवाह किसी महिला के “ना कहने” के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता और शादी के नाम पर जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करना महिलाओं की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को अब अपने कानूनी और संवैधानिक ढांचे में बदलाव कर “ना मतलब ना (No Means No)” की जगह “सिर्फ हां मतलब हां (Only Yes Means Yes)” की मानसिकता अपनानी चाहिए।

वर्तमान भारतीय कानून, विशेषकर भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में, वैवाहिक रेप को अपराध मानने से इंकार किया गया है यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो। थरूर का प्रस्ताव इस कानूनी अंतर को समाप्त करने का प्रयास है। विधेयक स्पष्ट करता है कि शादी केवल सामाजिक या कानूनी रिश्ते का नाम नहीं है, बल्कि हर महिला को अपने शरीर और स्वायत्तता का अधिकार है। यदि कोई पति बिना पत्नी की सहमति के यौन संबंध स्थापित करता है, तो उसे कानून के दायरे में लाया जाएगा।

थरूर ने कहा कि वर्तमान कानून महिलाओं को कानूनी सुरक्षा से वंचित करता है और उनकी मूलभूत गरिमा, निजता और स्वायत्तता का उल्लंघन करता है। उन्होंने 2023 की भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों की आलोचना करते हुए इसे “पूर्व‑उपनिवेशकालीन मानसिकता” बताया और कहा कि इसे बदलना समय की मांग है। इसके साथ ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह तर्क दिया कि विवाह के भीतर यौन असहमति को अस्वीकार्य माना जाता है, इसलिए भारत को भी अपने कानून में यह बदलाव लाना चाहिए।

विधेयक में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS‑5) के आंकड़े बताते हैं कि 18-49 वर्ष की महिलाओं में से 83% ने अपने वर्तमान पति को यौन हिंसा के लिए दोषी बताया। यह दर्शाता है कि वैवाहिक यौन हिंसा केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक चुनौती है। थरूर का यह प्रस्ताव पारंपरिक सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण को चुनौती देता है और कहता है कि सहमति की अनदेखी करना अपराध है। यदि यह विधेयक कानून बन जाता है, तो यह महिलाओं की कानूनी सुरक्षा और सामाजिक आत्मनिर्भरता दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।

शशि थरूर ने इस विधेयक के साथ दो अन्य निजी विधेयक भी लोकसभा में पेश किए हैं। इनमें व्यावसायिक सुरक्षा और कार्य स्थिति से संबंधित संशोधन और राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के पुनर्गठन के लिए एक स्थायी आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव शामिल है।

थरूर का यह निजी विधेयक न केवल कानूनी पहलू को उजागर करता है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश भी है कि विवाह का मतलब महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा नहीं हो सकता। “ना का मतलब सिर्फ ना” — यह नारा अब केवल नारा नहीं, बल्कि कानूनी दायित्व बनने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो भारत की न्याय व्यवस्था और सामाजिक समझ दोनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकता है।

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