रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के हालिया बयान ने देश की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। गुजरात के बड़ौदा के पास आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने दावा किया कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को सरकारी खर्च से पुनर्निर्मित कराने के पक्ष में थे, लेकिन उस समय के गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस विचार का विरोध किया था। राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में पटेल की भूमिका, उनके निर्णयों और राष्ट्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए यह बताया कि पटेल ने धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए सरकारी धन के उपयोग को उचित नहीं माना था। उनके इस बयान के सामने आते ही राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
विपक्ष ने राजनाथ सिंह पर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाते हुए चुनौती दी है कि वे अपने दावे के समर्थन में प्रामाणिक दस्तावेज़ या कोई विश्वसनीय सरकारी रिकॉर्ड पेश करें। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कहा कि ऐसा कोई प्रमाण सार्वजनिक अभिलेखों में उपलब्ध नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि नेहरू ने बाबरी मस्जिद के सरकारी धन से निर्माण का प्रस्ताव रखा था। उनका कहना है कि बिना दस्तावेज़ी आधार के ऐसे दावे केवल राजनीतिक लाभ के लिए किए जाते हैं और इससे इतिहास को लेकर भ्रम पैदा होता है। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तेजी से फैल गया है, जहां लोग राजनाथ के दावे की सच्चाई और उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
इतिहासकारों और विशेषज्ञों का भी मानना है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिकार्ड में नेहरू द्वारा धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए सरकारी फंड के उपयोग का समर्थन करने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता। कई विश्लेषक यह भी कहते हैं कि नेहरू सामान्यतः धार्मिक पुनर्निर्माण के लिए सरकारी संसाधनों की जगह समाज या समुदाय द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को प्राथमिकता देते थे। इसीलिए राजनाथ सिंह के बयान के बाद यह सवाल प्रमुखता से उठ रहा है कि क्या सरकार इस दावे के समर्थन में कोई दस्तावेज सामने लाएगी या यह केवल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनकर रह जाएगा। फिलहाल, विपक्ष की “दस्तावेज़ दिखाओ” मांग के बाद यह विवाद और अधिक तीखा हो गया है और देश की राजनीति में एक बार फिर इतिहास की व्याख्या को लेकर टकराव नजर आ रहा है।













