बंगाल की राजनीति में ‘वंदे मातरम’ की एंट्री, भाजपा और टीएमसी ने बनाई नई रणनीति

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर सांस्कृतिक प्रतीकों की जंग के केंद्र में पहुंच गई है और इस बार विवाद का प्रमुख मुद्दा है ‘वंदे मातरम’। केंद्र सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के साथ ही वंदे मातरम पर दिनभर चलने वाली विशेष चर्चा का प्रस्ताव रखा है, जिसके राजनीतिक असर सीधे तौर पर बंगाल की सियासत में दिखाई दे रहे हैं। भाजपा इस कदम को राष्ट्रीय धरोहर और सांस्कृतिक गौरव से जोड़ते हुए बंगाल में अपनी राजनीतिक रणनीति के केंद्र में रख रही है। पार्टी की ओर से लगातार सभाओं, रैलियों और संवाद अभियानों में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के विषय को प्रमुखता दी जा रही है। भाजपा का लक्ष्य इसे राष्ट्रीयता की भावना से जोड़कर उन वोटर वर्गों को साधना है जो सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रवादी प्रतीकों के प्रति संवेदनशील माने जाते हैं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने इसे चुनावी ध्रुवीकरण का प्रयास बताते हुए तीखी आपत्तियाँ दर्ज की हैं और भाजपा के ‘सांस्कृतिक एजेंडा’ का मुखर विरोध शुरू कर दिया है।

टीएमसी इस बहस को केंद्र की ‘राजनीतिक चाल’ बताकर इसे बंगाल की क्षेत्रीय-सांस्कृतिक पहचान पर हमले के रूप में चित्रित कर रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में राज्य के सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान ‘बंग्लार माटी, बंग्लार जल’ का गीत अनिवार्य करने का आदेश जारी किया। इसे भाजपा के बढ़ते सांस्कृतिक प्रभाव के जवाब में उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है। टीएमसी नेताओं का कहना है कि बंगाल की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें गहरी हैं और इसे बाहरी राजनीतिक एजेंडा से प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। दूसरी ओर, भाजपा का आरोप है कि तृणमूल जानबूझकर राष्ट्रीय प्रतीकों को विवादित बना रही है और क्षेत्रीय पहचान को राष्ट्रीय पहचान के विरुद्ध खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

इस विवाद ने तब और तूल पकड़ा जब भाजपा के कुछ नेताओं की टिप्पणियों पर टीएमसी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और आरोप लगाया कि भाजपा ‘वंदे मातरम’ और ‘जन गण मन’ के बीच अनावश्यक बहस खड़ी कर देश की साहित्यिक विरासत को विभाजित करने की कोशिश कर रही है। टीएमसी का कहना है कि ऐसी बयानबाज़ी सांस्कृतिक उलझन पैदा करती है और जनता में गलत संदेश देती है। पार्टी ने संकेत दिया है कि वह संसद में भी इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाएगी। वहीं, केंद्र सरकार वंदे मातरम पर विशेष चर्चा को ‘सांस्कृतिक संवर्धन’ का प्रयास बताकर आगे बढ़ाने की तैयारी में है। संसद में यह टकराव और तीखा होने की आशंका है, क्योंकि विपक्ष पहले ही पार्लियामेंट सचिवालय द्वारा जारी कुछ दिशानिर्देशों और सदन में नारों के उपयोग को लेकर असंतोष जता चुका है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल में यह लड़ाई किसी गीत या नारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक भावनाओं, पहचान और मतदाताओं की संवेदनशीलता को प्रभावित करने वाली गहरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। भाजपा जहां राष्ट्रीय प्रतीकों को केंद्र में रखकर चुनावी माहौल बनाना चाहती है, वहीं टीएमसी क्षेत्रीय भाषा और सांस्कृतिक गौरव को ढाल बनाकर अपने आधार को मजबूत करने में जुटी है। आने वाले दिनों में संसद से लेकर बंगाल के मैदान तक यह मुद्दा और गरमाने की पूरी संभावना है, जिससे 2026 के विधानसभा चुनावों की राह पहले ही सियासी तनाव से भरती जा रही है।

Leave a Comment

और पढ़ें