महाराष्ट्र की राजनीति में उस समय हलचल तेज़ हो गई जब उपमुख्यमंत्री और एनसीपी (अजित गुट) के नेता अजित पवार ने स्थानीय चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसे मतदाताओं पर दबाव डालने वाला माना गया। एक जनसभा में उन्होंने कहा था कि यदि स्थानीय निकायों में उनके उम्मीदवार जीतते हैं, तो वे क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक फंड उपलब्ध कराएंगे, लेकिन यदि मतदाताओं ने उनका समर्थन नहीं किया तो फंड जारी करना मुश्किल हो जाएगा। इस बयान को विपक्षी दलों ने ‘वोट दो—तभी फंड मिलेगा’ जैसी धमकी का रूप बताया और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत करार दिया। कई राजनीतिक नेताओं ने इसे सत्ता के दुरुपयोग जैसा बताया और चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग भी उठाई।
इस पूरे विवाद के बीच स्वयं अजित पवार के चाचा और एनसीपी (शरद गुट) के अध्यक्ष शरद पवार ने भी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा कि चुनाव में वोट मांगने का आधार काम, सेवा और जनहित में किए गए प्रयास होने चाहिए, न कि धन या वित्तीय आश्वासनों पर आधारित लालच। शरद पवार ने स्पष्ट कहा कि विकास कार्यों के बजट को वोटों से जोड़ना अनुचित और गलत है, क्योंकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मतदाता अपनी स्वतंत्र इच्छा से चुनाव करते हैं। उनका यह बयान न केवल भतीजे की टिप्पणी पर सीधा तंज माना जा रहा है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि दोनों गुटों के बीच लंबे समय से चल रहा राजनीतिक मतभेद फिर सतह पर आ गया है।
विवाद बढ़ने पर अजित पवार ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है और उनका उद्देश्य किसी को धमकाना नहीं था। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि यदि उनकी पार्टी सत्ताधारी स्तर पर मजबूत होगी तो क्षेत्र के विकास कार्य तेज़ी से हो सकेंगे। इसके बावजूद विपक्ष ने यह मुद्दा उठाकर सरकार पर दबाव बनाए रखा और चुनाव आयोग से निष्पक्ष जांच की मांग की। इसी के साथ स्थानीय निकाय चुनावों के नज़दीक आते ही यह मुद्दा और गरमाता जा रहा है, जो राज्य की राजनीति में आने वाले दिनों में और नए समीकरण पैदा कर सकता है।













