अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हाल ही में G20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 28‑बिंदुओं वाली यूक्रेन‑रूस शांति योजना को लेकर गहरी बहस हुई। हालांकि कई पश्चिमी नेताओं ने इसे वार्ता का प्रारंभिक आधार माना, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अंतिम मसौदा नहीं है और इसे अंतिम रूप देने से पहले कई सुधारों की जरूरत है। योजना में यूक्रेन की सैन्य ताकत को सीमित करने, NATO में शामिल न होने की शर्त, और सीमाओं तथा सुरक्षा प्रावधानों में अस्पष्टताएं शामिल हैं, जिन्हें यूरोपीय देश और पश्चिमी साझेदार अपने हितों के खिलाफ मान रहे हैं। इस परिदृश्य में यूरोपीय देशों, जापान, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे साझेदारों ने जोर देकर कहा कि कोई भी समझौता यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा की गारंटी के बिना स्थायी नहीं होगा।
ट्रम्प ने मीडिया के सामने यह स्पष्ट किया कि यह उनका अंतिम प्रस्ताव नहीं है और उन्होंने यूक्रेन को इसके लिए एक संक्षिप्त समय-सीमा दी, साथ ही संकेत दिए कि मसौदा संशोधित किया जा सकता है। इस प्रस्ताव के कुछ हिस्सों का रूस ने स्वागत किया है, जिससे पश्चिमी देशों में यह धारणा और मजबूत हुई कि मसौदा उनके हितों के अनुकूल हो सकता है। वहीं, यूक्रेन ने इस योजना की कुछ शर्तों को स्वीकार करने से इनकार किया है और कहा कि यह देश की संप्रभुता के लिए खतरा बन सकती हैं।
योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए विशेषज्ञों का कहना है कि बहुपक्षीय स्वीकृति, सुरक्षा गारंटी और प्रभावी वेरिफिकेशन मैकेनिज्म (जांच-परख प्रणाली) आवश्यक हैं। इसके तहत अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच निगरानी तंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव है, जो किसी भी उल्लंघन की स्थिति में सक्रिय हो सके। जेनेवा और अन्य कूटनीतिक मंचों पर अब तकनीकी और राजनयिक चर्चाएं तेजी से चल रही हैं, ताकि मसौदे में आवश्यक संशोधन किए जा सकें और सभी पक्षों की भागीदारी सुनिश्चित हो।
इस प्रकार, ट्रम्प की 28‑बिंदुओं वाली शांति योजना ने G20 में वार्ता का मार्ग तो खोला है, लेकिन इसे अंतिम रूप देने से पहले संवेदनशील मुद्दों पर संतुलन बनाने और सभी हितधारकों के बीच सहमति सुनिश्चित करने की चुनौती बनी हुई है। आने वाले दिनों में यह तय होगा कि मसौदा किस हद तक संशोधित होगा और क्या यह यूक्रेन की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक टिकाऊ आधार बन सकता है।













