राष्ट्रपति संदर्भ पर सरकार का रुख सख्त, CM स्टालिन बोले– ‘राज्य की आवाज दबने नहीं देंगे’

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई सलाहात्मक राय (Presidential Reference Advisory) पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया उनकी सरकार की “राज्य के संवैधानिक हकों की लड़ाई” को रोक नहीं सकती। उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिल नाडु सरकार अप्रैल 8, 2025 के उस महत्वपूर्ण फैसले की मूल भावना की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रखेगी, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा और दायित्वों पर महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए गए थे। स्टालिन का आरोप है कि राष्ट्रपति संदर्भ का उद्देश्य उस फैसले की व्याप्ति को सीमित करना और राज्यों को मिले अधिकारों को कमजोर करना है। उनकी राय में यह केंद्र सरकार द्वारा संघवाद और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सीधा हस्तक्षेप है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए ऐसे संदर्भ में न्यायालय केवल सलाह देता है, न कि किसी पहले से दिए गए निर्णय को पलटता है। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने के दौरान किन प्रक्रियाओं और सीमाओं का पालन करना चाहिए, यह विषय संविधान के ढांचे में पहले ही उल्लेखित है। न्यायालय ने माना कि कुछ मामलों में राज्यपालों द्वारा विधेयकों को लंबित रखने की शिकायतें आई हैं, लेकिन इससे पूरे देश के लिए एक निश्चित, कठोर समय-सीमा लागू करने का औचित्य नहीं बनता। इसके बावजूद राज्य सरकारों—विशेषकर तमिल नाडु जैसी सरकारों—का मानना है कि अत्यधिक विलंब लोकतांत्रिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करता है और इसलिए स्पष्ट व बाध्यकारी नियमों की आवश्यकता है।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा है कि उनकी सरकार न केवल इस कानूनी लड़ाई को आगे बढ़ाएगी, बल्कि यदि जरूरत पड़ी तो संविधान संशोधन की मांग भी उठाई जाएगी ताकि भविष्य में राज्यों के अधिकारों में किसी भी तरह की कटौती न हो सके। उन्होंने विपक्ष-शासित सभी राज्यों से एकजुट होकर इस मुद्दे पर साझा रणनीति अपनाने की अपील की है। उनका मानना है कि यह विवाद किसी एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे संघीय ढांचे की रक्षा का सवाल है। स्टालिन का कहना है कि राष्ट्रपति संदर्भ के जरिए केंद्र सरकार न्यायपालिका को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने की कोशिश कर रही है, जबकि न्यायालय की भूमिका केवल संवैधानिक व्याख्या तक सीमित होनी चाहिए।

इस पूरे घटनाक्रम ने केंद्र-राज्य संबंधों पर व्यापक बहस छेड़ दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की सलाहात्मक राय के बाद भी विवाद खत्म नहीं होगा। बल्कि अब यह मुद्दा न्यायिक दायरे से आगे बढ़कर राजनीतिक और संवैधानिक बहस का हिस्सा बनने जा रहा है। स्टालिन के बयान से साफ है कि तमिल नाडु सरकार इस मुद्दे पर पीछे हटने वाली नहीं है। दूसरी ओर, केंद्र की दलील यह है कि राष्ट्रपति-संदर्भ का उद्देश्य संविधान में मौजूद अस्पष्टताओं को स्पष्ट करना है, न कि किसी राज्य विशेष को लक्षित करना।

कुल मिलाकर, राष्ट्रपति संदर्भ और सुप्रीम कोर्ट की राय ने राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति-संतुलन पर एक नई चर्चा को जन्म दिया है। मुख्यमंत्री स्टालिन का दो टूक बयान इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में यह विवाद और गहरा सकता है, क्योंकि राज्यों को लगता है कि यह संघर्ष केवल एक विधेयक या एक निर्णय का नहीं, बल्कि भारत की संघीय संरचना की मजबूती का मामला है। आने वाले महीनों में अदालत की आगे की सुनवाई, संवैधानिक विशेषज्ञों की राय और केंद्र-राज्य सरकारों की राजनीतिक रणनीति इस पूरे विवाद के भविष्य का निर्धारण करेगी।

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