अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार ने रूस के साथ व्यापारिक संबंध रखने वाले देशों पर कठोर आर्थिक कार्रवाई करने के लिए एक नए कानून का मसौदा तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। ट्रंप ने हाल ही में बयान दिया कि रिपब्लिकन सांसद एक ऐसा विधेयक तैयार कर रहे हैं, जिसके तहत रूस के साथ ऊर्जा, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस या अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं का व्यापार करने वाले देशों पर भारी दंडात्मक टैरिफ लगाए जा सकते हैं। रिपोर्टों के अनुसार प्रस्तावित कानून में 100% से 500% तक के आयात शुल्क की व्यवस्था हो सकती है, जिसका उद्देश्य उन देशों की आर्थिक गतिविधियों पर दबाव बनाना है जो मॉस्को के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार जारी रखकर अप्रत्यक्ष रूप से रूस को राजस्व उपलब्ध करा रहे हैं। ट्रंप ने यह भी संकेत दिए कि इस पहल का दायरा रूस से आगे बढ़कर ईरान जैसे देशों को भी कवर कर सकता है, जिनके साथ व्यापार पर पहले से ही अमेरिका की निगाह बनी हुई है।
अमेरिका द्वारा इस तरह का सख्त कदम उठाने के पीछे प्रमुख कारण रूस की यूक्रेन नीति और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का कमजोर पड़ता असर माना जा रहा है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध तभी प्रभावी होंगे जब उसके व्यापारिक साझेदार देशों को भी दंडित किया जाए, ताकि मॉस्को को मिलने वाला अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लाभ सीमित हो सके। यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब अमेरिका पहले ही रूसी ऊर्जा कंपनियों पर कई स्तरों के प्रतिबंध लागू कर चुका है और उनसे जुड़ी वैश्विक शिपिंग व बीमा गतिविधियों पर कड़ी निगरानी कर रहा है। नए विधेयक के लागू होने की स्थिति में न केवल रूस बल्कि कई एशियाई और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ सकता है, क्योंकि रूस से तेल व गैस खरीदना इन देशों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विकल्प रहा है।
भारत के लिए यह स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि पिछले दो वर्षों में भारत ने सस्ते दामों पर रूसी कच्चा तेल आयात बढ़ाकर अपनी घरेलू ऊर्जा जरूरतों को अधिक स्थिर बनाया है। रूस-भारत ऊर्जा व्यापार में आई तेजी ने भारत को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक कीमतें बनाए रखने में मदद की, लेकिन ट्रंप सरकार के प्रस्तावित कानून से इस रणनीति को बड़ा झटका लग सकता है। अगर अमेरिका 100–500% तक के दंडात्मक टैरिफ लागू करता है, तो भारतीय निर्यात—विशेषकर फार्मा, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग उत्पाद और आईटी सेवाओं—पर असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भारत का प्रमुख व्यापारिक भागीदार होने के कारण किसी भी प्रकार की दंडात्मक नीति भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक दबाव डाल सकती है। इसके अलावा, अगस्त 2025 में भी ट्रंप प्रशासन ने भारत के लिए कुछ संभावित दंडात्मक करों का संकेत दिया था, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में अनिश्चितता बनी हुई थी।
कूटनीतिक स्तर पर भी यह स्थिति भारत के लिए एक संतुलन का खेल बन सकती है। एक ओर रूस भारत की रक्षा, ऊर्जा और रणनीतिक साझेदारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार और महत्वपूर्ण तकनीकी सहयोगी है। ऐसे में भारत के सामने चुनौती होगी कि वह दोनों देशों के बीच संतुलन साधते हुए ऐसी रणनीति तैयार करे जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा भी बनी रहे और उसके निर्यात बाजार पर भी कोई नकारात्मक असर न पड़े। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत, घरेलू उत्पादन बढ़ाने और बहुपक्षीय मंचों पर कूटनीतिक संवाद बढ़ाना भारत के लिए अनिवार्य विकल्पों में शामिल हैं।
अभी यह विधेयक प्रारंभिक चरण में है और अमेरिकी कांग्रेस में इसकी चर्चा तथा संशोधन की प्रक्रिया जारी है। विशेषज्ञों के अनुसार इसकी अंतिम रूपरेखा आने में समय लग सकता है, क्योंकि इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों तथा कई भू-राजनीतिक पेचीदगियों को ध्यान में रखना होगा। हालांकि, यह स्पष्ट है कि यदि यह कानून बिना बड़े बदलाव के पास होता है, तो वैश्विक व्यापार संतुलन में बड़ा फेरबदल हो सकता है। भारत सहित कई देशों को अपनी नीति तत्परता के साथ पुनर्विचार करनी पड़ेगी, ताकि अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने आर्थिक व कूटनीतिक संबंधों को संतुलित रखते हुए राष्ट्रीय हित सुरक्षित किए जा सकें।













