अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद से प्रदेश में बाहरी नागरिकों द्वारा जमीन खरीदने की प्रक्रिया में धीरे-धीरे बढ़ोतरी दर्ज की गई है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर सरकार ने विधानसभा में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की है, जिसमें बताया गया है कि 370 हटने के बाद से अब तक कुल 631 गैर-निवासियों ने प्रदेश में लगभग 386 कनाल 128 वर्ग फुट जमीन खरीदी है, जिसकी कुल कीमत करीब 129.97 करोड़ रुपये (लगभग 130 करोड़ रुपये) आंकी गई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, जमीन खरीद के मामले में जम्मू संभाग बाहरी निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। यहाँ 378 बाहरी खरीदारों ने 212 कनाल 13 मरला 128 वर्ग फुट जमीन खरीदी, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग 90.48 करोड़ रुपये है। वहीं कश्मीर संभाग में 253 गैर-निवासियों ने 173 कनाल 7 मरला जमीन खरीदी, जिसकी कीमत करीब 39.49 करोड़ रुपये बताई गई है। यह आँकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जम्मू क्षेत्र में व्यावसायिक और आवासीय निवेश की प्रवृत्ति अधिक है, जबकि कश्मीर में बाहरी खरीदारों की रुचि अपेक्षाकृत कम रही है।
वर्षवार विश्लेषण से यह भी स्पष्ट होता है कि शुरुआती वर्षों में खरीदारी की गति धीमी थी, पर बाद में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 2020 में केवल 1 बाहरी व्यक्ति ने जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदी थी, जबकि 2021 में यह संख्या 57 तक पहुंची। इसके बाद 2022 में 127, 2023 में 119 और 2024 में 169 बाहरी व्यक्तियों ने जमीन खरीदी। वर्ष 2025 में अब तक 158 लोगों द्वारा करीब 106 कनाल 11 मरला जमीन खरीदी गई है, जिसकी कीमत लगभग 37.17 करोड़ रुपये आंकी गई है। यह रुझान दर्शाता है कि 2019 के बाद जैसे-जैसे कानूनी और प्रशासनिक ढांचा स्थिर हुआ, बाहरी निवेशकों का विश्वास भी बढ़ता गया।
यह जानकारी जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक प्रश्न के जवाब में दी गई, जिसमें विधायक शेख एहसान अहमद ने प्रदेश में गैर-निवासियों द्वारा की गई संपत्ति खरीद के आंकड़े मांगे थे। सरकार ने अपने जवाब में कहा कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने और प्रदेश के पुनर्गठन के बाद गैर-निवासियों को जमीन खरीदने का अधिकार प्राप्त हुआ है। इस अधिकार के तहत कई जिलों में व्यावसायिक, औद्योगिक और आवासीय प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदी गई है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी सौदे प्रदेश के मौजूदा भूमि अधिनियमों और नियमों के तहत हुए हैं और राजस्व विभाग द्वारा इनका पूरा रिकॉर्ड रखा गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह आंकड़ा, भले ही पहली नजर में बड़ा लगे, पर प्रदेश की भौगोलिक और आर्थिक क्षमता की तुलना में यह कुल मिलाकर सीमित निवेश है। छह वर्षों में 631 बाहरी खरीदारों का आंकड़ा दर्शाता है कि निवेश का रुझान अभी शुरुआती स्तर पर है। जम्मू में निवेश की अधिकता का कारण वहां का बेहतर बुनियादी ढांचा, सुरक्षा माहौल और व्यावसायिक संभावनाएं बताई जाती हैं, जबकि कश्मीर घाटी में अब भी कुछ हद तक सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता को लेकर निवेशकों में सतर्कता देखी जा रही है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि बाहरी निवेश से प्रदेश में रोजगार के अवसर, रियल एस्टेट मार्केट और पर्यटन क्षेत्र में नई संभावनाएं खुल सकती हैं। हालांकि, स्थानीय राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने इस प्रक्रिया को लेकर चिंता भी जताई है कि इससे स्थानीय लोगों की भूमि और रोजगार के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। सरकार का कहना है कि सभी खरीद-फरोख्त कानूनी दायरे में हैं और किसी स्थानीय नागरिक के हित को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।
कुल मिलाकर, अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में भूमि स्वामित्व की नई व्यवस्था ने प्रदेश की आर्थिक दिशा को धीरे-धीरे बदलना शुरू कर दिया है। लगभग 130 करोड़ रुपये के बाहरी निवेश से यह संकेत मिल रहा है कि आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर निवेश के नए केंद्र के रूप में उभर सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह भूमि निवेश स्थानीय अर्थव्यवस्था, उद्योगों और रोजगार के अवसरों को किस हद तक प्रभावित या प्रोत्साहित करता है।













