भारत निपाह वायरस (Nipah Virus) से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने देश में स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibody) के विकास और उत्पादन के लिए उद्योग भागीदारों से आवेदन आमंत्रित किए हैं। इस योजना के तहत ऐसे सक्षम औद्योगिक साझेदारों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिनके पास हर सप्ताह कम से कम एक लाख खुराक तैयार करने की क्षमता हो। इसका उद्देश्य निपाह जैसे उच्च जोखिम वाले वायरस के प्रकोप की स्थिति में त्वरित और प्रभावी चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराना है।
निपाह वायरस, जो मुख्यतः चमगादड़ों से मनुष्यों में फैलता है, भारत में कई बार गंभीर संक्रमण फैला चुका है। केरल और बंगाल जैसे राज्यों में इसके प्रकोप से कई लोगों की जान जा चुकी है। अब तक इस वायरस के इलाज के लिए कोई स्वीकृत दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार एक आशाजनक विकल्प साबित हो सकता है। ICMR का उद्देश्य न केवल इस दवा को विकसित करना है बल्कि एक ऐसा आत्मनिर्भर प्लेटफॉर्म तैयार करना है जो भविष्य के किसी भी संक्रमण या आपात स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दे सके।
ICMR की इस पहल में देश की प्रमुख प्रयोगशालाएँ और अनुसंधान संस्थान सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। केरल का इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड वायरोलॉजी (IAV) और अन्य बायो-टेक संस्थान निपाह वायरस पर केंद्रित अनुसंधान कर रहे हैं। वैज्ञानिक इस वायरस के G-glycoprotein और वायरस-लाइक पार्टिकल्स (VLP) पर आधारित संरचनाओं का अध्ययन कर रहे हैं, जिससे प्रभावी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित की जा सके। यह रिसर्च भारत को न केवल आत्मनिर्भर बनाएगी बल्कि आयात पर निर्भरता भी घटाएगी।
वहीं, वैश्विक स्तर पर भी भारत के प्रयासों को समर्थन मिल रहा है। Coalition for Epidemic Preparedness Innovations (CEPI), यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसी संस्थाएँ निपाह के खिलाफ वैक्सीन और एंटीबॉडी अनुसंधान में साझेदारी कर रही हैं। हाल ही में इन संगठनों ने निपाह वैक्सीन के एक लाख खुराक के ‘इन्वेस्टिगेशनल रिजर्व’ की तैयारी की घोषणा की है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत बायोमेडिकल उत्पादन की दिशा में वैश्विक सहयोग के साथ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के निर्माण से पहले इनके सुरक्षा और प्रभावशीलता परीक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) आवश्यक होंगे। CEPI और ICMR मिलकर भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में इन एंटीबॉडी पर मानव परीक्षण की योजना बना रहे हैं। परीक्षण सफल होने पर इन्हें आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी जा सकती है। इसके साथ ही ICMR ने यह भी स्पष्ट किया है कि चयनित उद्योगों को उत्पादन के साथ-साथ बायोसुरक्षा मानकों, भंडारण, और आपूर्ति श्रृंखला की क्षमता भी प्रदर्शित करनी होगी ताकि आपात स्थिति में तुरंत खुराक उपलब्ध कराई जा सके।
यह पहल भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है। देश में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उत्पादन की क्षमता विकसित होने से भविष्य में निपाह या अन्य वायरस जनित बीमारियों के प्रकोप के समय घरेलू स्तर पर उपचार की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत को संक्रमण नियंत्रण और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में और आगे ले जाएगा।
संक्षेप में, ICMR की यह पहल निपाह वायरस के खिलाफ देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। हर सप्ताह एक लाख खुराक तैयार करने की क्षमता हासिल होने पर भारत न केवल अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने में सक्षम होगा, बल्कि भविष्य में अन्य देशों की भी सहायता कर सकेगा। यह न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की रणनीतिक तैयारियों का भी प्रतीक है।













