देशभर में तेजी से बढ़ते ‘डिजिटल अरेस्ट’ नामक साइबर ठगी के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को नोटिस जारी किया है। अदालत ने इस घोटाले को न केवल साइबर अपराध बल्कि न्यायिक प्रणाली पर सीधे हमले के रूप में देखा है, क्योंकि इन मामलों में अपराधी न्यायपालिका के नाम और उसकी मुहर का दुरुपयोग कर लोगों से बड़ी रकम ठग रहे हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि इस तरह के मामलों में केवल स्थानीय कार्रवाई पर्याप्त नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक समन्वित रणनीति की आवश्यकता है। अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरामण से भी इस मामले में सहयोग करने को कहा है और केंद्र से यह स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं कि ऐसे मामलों को रोकने, पीड़ितों को राहत देने और बैंक लेन-देन फ्रीज करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
मामले की पृष्ठभूमि में अंबाला, हरियाणा के एक वरिष्ठ नागरिक दंपति का प्रकरण प्रमुख रहा, जिन्होंने शिकायत की थी कि फर्जी अधिकारियों ने उन्हें न्यायालय और पुलिस के नाम पर धमकाया और करीब एक करोड़ रुपये की ठगी कर ली। ठगों ने उन्हें नकली अदालती आदेश और गिरफ्तारी वारंट भेजकर भयभीत किया। रिपोर्टों के अनुसार, देश के कई हिस्सों से ऐसे ही कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें ठग खुद को CBI, पुलिस या न्यायालय से जुड़ा अधिकारी बताकर लोगों को फंसाते हैं। कई मामलों में पीड़ितों ने 1.5 करोड़ रुपये तक की ठगी की शिकायत की है।
मुंबई साइबर पुलिस ने हाल ही में ऐसे एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसमें लाखों रुपये की ऑनलाइन ठगी और विदेशी खातों में ट्रांसफर का खुलासा हुआ। पुलिस के अनुसार, इन गिरोहों के तार कई राज्यों और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस व्यापक नेटवर्क को ध्यान में रखते हुए केंद्र और CBI से यह भी पूछा है कि क्या राज्यों की साइबर सेल और केंद्रीय एजेंसियों के बीच त्वरित सूचना आदान-प्रदान और कार्रवाई के लिए कोई प्रभावी प्रणाली मौजूद है।
अदालत ने कहा कि जब न्यायपालिका के नाम पर नागरिकों को धोखा दिया जा रहा है, तो यह केवल वित्तीय अपराध नहीं बल्कि जनता के विश्वास पर सीधा प्रहार है। इसलिए जरूरी है कि ऐसे मामलों को सामान्य साइबर अपराध की तरह न देखकर एक गंभीर राष्ट्रीय चुनौती के रूप में लिया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है कि क्या अब तक ऐसे अपराधों के खिलाफ कोई विशेष नीति, दिशा-निर्देश या अभियान शुरू किया गया है।
साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि “डिजिटल अरेस्ट” जैसे मामले खासतौर पर वृद्ध नागरिकों और अनभिज्ञ उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाते हैं। ठग फोन कॉल या वीडियो कॉल पर पीड़ितों को धमकाते हैं और उन्हें नकली कानूनी दस्तावेज दिखाकर डराते हैं। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे किसी भी कॉल पर तुरंत फोन काट दें, बैंक या पहचान संबंधी जानकारी साझा न करें, और तुरंत साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें।
सुप्रीम कोर्ट का यह स्वतः संज्ञान कदम न केवल कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करेगा बल्कि साइबर अपराध के खिलाफ राष्ट्रीय नीति निर्धारण में भी अहम भूमिका निभा सकता है। न्यायालय की अगली सुनवाई में केंद्र, राज्य सरकारों और CBI की रिपोर्ट के आधार पर भविष्य की दिशा तय होगी। अदालत की यह पहल पीड़ितों को राहत देने और डिजिटल ठगी के बढ़ते खतरे से समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।













