नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि डॉ. हेडगेवार केवल एक संगठनकर्ता ही नहीं थे बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय हिस्सेदार भी रहे। उनका मानना है कि भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किए जाने पर देश में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना को और मजबूती मिलेगी।
सिद्दीकी ने यह भी उल्लेख किया कि आरएसएस अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है और ऐसे ऐतिहासिक अवसर पर डॉ. हेडगेवार को भारत रत्न दिए जाने से यह कदम और भी अधिक सार्थक हो जाएगा। उन्होंने हेडगेवार के योगदान को राष्ट्र निर्माण, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण से जोड़ा और कहा कि यह सम्मान न केवल उन्हें श्रद्धांजलि होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देगा।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को हुआ था। उन्होंने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। हेडगेवार का जीवन अनुशासन, संगठन और राष्ट्र के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा। वे स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहे और समाज में राष्ट्रवादी विचारधारा को स्थापित करने के लिए उन्होंने आरएसएस को एक माध्यम बनाया। इतिहासकारों और लेखकों ने उन्हें एक ऐसे दूरदर्शी नेता के रूप में याद किया है जिन्होंने अनुशासित और संगठित समाज की नींव रखने की दिशा में काम किया।
गौरतलब है कि हाल ही में आरएसएस के शताब्दी वर्ष पर केंद्र सरकार ने स्मारक डाक टिकट और स्मृति सिक्का जारी किया है। इसके साथ ही संघ के ऐतिहासिक योगदानों को सामने लाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा भी बनाई जा रही है। ऐसे समय में जमाल सिद्दीकी की यह पहल राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से खास मानी जा रही है।
भारत रत्न दिए जाने की प्रक्रिया संवैधानिक और प्रशासनिक है। किसी भी नामांकन पर अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास होता है, हालांकि इसमें सरकार की सिफारिश और सहमति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतीत में भी कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने अपने-अपने नायकों को यह सम्मान देने की मांग की है। यही कारण है कि इस मांग को लेकर राजनीतिक बहस और विमर्श तेज होना तय माना जा रहा है।
जमाल सिद्दीकी के इस पत्र के सामने आने के बाद सोशल मीडिया और विभिन्न मंचों पर इस पर व्यापक प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। समर्थकों ने इसे डॉ. हेडगेवार के योगदानों को मान्यता देने का एक सही कदम बताया, वहीं विरोधियों ने इस मांग को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा और इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर सवाल उठाए। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाती है और क्या आरएसएस संस्थापक को भारत रत्न देने की दिशा में कोई औपचारिक कदम उठाया जाता है।
