रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक शुरू हो गई है, जिसमें देश की आर्थिक वृद्धि और महंगाई की मौजूदा स्थिति पर व्यापक समीक्षा की जाएगी। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब ताज़ा आर्थिक संकेतक भारत की GDP को मजबूत स्थिति में दिखा रहे हैं और खुदरा मुद्रास्फीति में भी लगातार नरमी का रुझान दर्ज किया गया है। इन दोनों कारकों ने बाजारों में यह उम्मीद बढ़ा दी है कि आगामी नीति में रेपो दर से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण निर्णय सामने आ सकता है।
पिछले कुछ महीनों में खाद्य कीमतों और थोक महंगाई में सुधार देखा गया है, जिससे समग्र मुद्रास्फीति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। विश्लेषकों का मानना है कि महंगाई के लक्ष्य दायरे में आने के साथ ही RBI के पास ब्याज दरों पर नरम रुख अपनाने की थोड़ी गुंजाइश बनी है। हालांकि, कई विशेषज्ञ रेपो दर में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं कर रहे हैं और मानते हैं कि केंद्रीय बैंक फिलहाल मौजूदा ढांचे को स्थिर रखना चाहेगा, ताकि वैश्विक परिदृश्य और घरेलू मांग के रुझानों का स्पष्ट आकलन किया जा सके।
इसके अलावा, रुपया पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले दबाव में है, जिसके चलते विदेशी पूंजी प्रवाह और विनिमय दर की स्थिति भी नीति निर्णय को प्रभावित कर सकती है। RBI समय-समय पर बाजारों में हस्तक्षेप कर मुद्रा स्थिरता बनाए रखने का प्रयास कर रहा है, और यह मुद्दा भी MPC की चर्चा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहने वाला है। वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव, तेल की कीमतों की अनिश्चितता और व्यापारिक दबाव जैसे बाहरी कारक भी समिति की सोच को प्रभावित कर सकते हैं।
इससे पहले वर्ष 2025 के शुरुआती महीनों में RBI ने कुल 100 आधार अंकों की दर कटौती की थी, जिसके बाद अगस्त से अब तक नीति दरों पर विराम बनाए रखा गया है। इस इतिहास को देखते हुए बाजार की नजर इस बात पर टिकी है कि क्या RBI पिछली कटौतियों के प्रभाव का आकलन जारी रखेगा या फिर आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कोई नई कटौती का संकेत देगा।
समग्र रूप से देखा जाए तो मजबूत GDP, नियंत्रित होती महंगाई, स्थिर होती मांग और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच यह MPC बैठक न केवल आर्थिक नीति की दिशा तय करेगी, बल्कि बैंकिंग क्षेत्र, कर्ज बाज़ार, रियल एस्टेट और उपभोक्ता ब्याज दरों पर भी इसके प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को मिलेंगे। सभी की निगाहें अंतिम दिन घोषित होने वाले निर्णय पर टिकी हुई हैं, जो आने वाले महीनों की वित्तीय नीति और आर्थिक माहौल के लिए बेहद अहम माना जा रहा है।













