पुणे में आरएसएस प्रमुख का बयान—भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत पर जोर

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पुणे में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि आज दुनिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात ध्यान और गंभीरता से सुनती है। उनके अनुसार, यह बदलाव केवल राजनीतिक कारणों से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा और प्रभाव का परिणाम है। भागवत ने कहा कि विश्व-राजनीति में लंबे समय तक भारत को केवल एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में देखा जाता रहा, लेकिन पिछले एक दशक में स्थिति बदली है और अब भारत वैश्विक संवाद में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है। इस संदर्भ में उन्होंने प्रधानमंत्री Modi के कूटनीतिक प्रयासों, अंतरराष्ट्रीय बैठकों और बहुपक्षीय मंचों पर उनकी सक्रियता को भी महत्वपूर्ण बताया। भागवत के अनुसार, किसी भी राष्ट्र का प्रभाव उसकी आर्थिक स्थिति, सैन्य क्षमता और रणनीतिक नीतियों से निर्धारित होता है, लेकिन भारत की विशेषता यह है कि इसकी शक्ति में सांस्कृतिक गहराई और वैचारिक विरासत भी शामिल है, जो दुनिया को आकर्षित करती है।

अपने भाषण में भागवत ने कहा कि भारत की बढ़ती शक्ति का मूल आधार केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि वह मूल्य-प्रणाली है, जिसने सदियों से दुनिया को “वसुधैव कुटुंबकम्” का संदेश दिया है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब किसी देश की नीतियाँ केवल स्वयं के हितों तक सीमित नहीं रहतीं और उनमें वैश्विक कल्याण का दृष्टिकोण होता है, तो दुनिया प्राकृतिक रूप से उस देश की बात गंभीरता से सुनने लगती है। उनके अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी उपस्थिति का असर इसलिए गहरा है क्योंकि वे भारत के पारंपरिक आदर्शों और आधुनिक वैश्विक अपेक्षाओं—दोनों को संतुलित रूप से प्रस्तुत करते हैं। भागवत ने यह भी कहा कि आज भारत के विचारों को अनसुना नहीं किया जाता क्योंकि देश ने स्वास्थ्य, तकनीक, अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है।

भागवत ने अपने वक्तव्य में समाज और संस्कृति से जुड़े कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी बात की। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे आधुनिकता को अपनाएँ, लेकिन अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर न जाएँ। उनके अनुसार, भारत का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब नई पीढ़ी तकनीकी रूप से सक्षम होने के साथ-साथ अपनी जड़ों और भाषा के प्रति भी सम्मान रखेगी। उन्होंने कहा कि दुनिया में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, लेकिन वह देश अधिक सशक्त बनता है जिसकी युवा पीढ़ी आत्मविश्वासी, अनुशासित और अपने कर्तव्य के प्रति सजग होती है। इसी संदर्भ में उन्होंने हनुमान के प्रसंग का उदाहरण देते हुए बताया कि सेवा, विनम्रता और समर्पण किसी भी नेतृत्व की सबसे बड़ी शक्ति होती है। भागवत ने स्पष्ट कहा कि यदि अहंकार प्रवेश करेगा, चाहे वह किसी व्यक्ति में हो या किसी संस्था में, तो पतन निश्चित है।

पुणे के कार्यक्रम के दौरान भागवत के इन विचारों का व्यापक राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों में भी उल्लेख किया गया। उनके बयान पर राजनीतिक विश्लेषकों और सोशल मीडिया में व्यापक चर्चा रही। कुछ लोगों ने इसे भारत की बढ़ती शक्ति का संकेत बताते हुए समर्थन किया, वहीं कुछ ने इसे राजनीतिक विमर्श में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका और लोकप्रियता को जोड़कर देखा। आलोचकों का यह भी कहना था कि वैश्विक राजनीति कई कारकों से प्रभावित होती है और केवल नेतृत्व की शैली को इसका प्रमुख आधार मानना उचित नहीं, लेकिन समर्थकों ने तर्क दिया कि भारत के प्रभाव का बढ़ना न केवल विचारों से, बल्कि नेतृत्व की दृढ़ता और वैश्विक सहभागिता से भी जुड़ा है। कार्यक्रम के बाद यह चर्चा और भी तेज़ हुई कि आने वाले समय में भारत किस तरह विश्व-स्तर पर अपनी नीति और दृष्टिकोण को और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करेगा।

मोहन भागवत का यह भाषण केवल प्रधानमंत्री के वैश्विक प्रभाव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें भारत की सांस्कृतिक शक्ति, राष्ट्रीय एकता और समाज की संरचना पर भी विस्तृत विचार व्यक्त किए गए। उनका संदेश स्पष्ट था—देश तभी आगे बढ़ेगा जब समाज मजबूत होगा, मूल्य स्थिर रहेंगे और नेतृत्व वैश्विक दृष्टि रखते हुए भी देश की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखेगा। पुणे में दिया गया उनका यह वक्तव्य न केवल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना बल्कि सामाजिक और वैचारिक मंचों पर भी व्यापक प्रतिक्रियाएँ लेकर आया।

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