भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की संरचना और कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र आज भी 1945 की वास्तविकताओं में ही फंसा हुआ है, जबकि दुनिया 2025 की चुनौतियों का सामना कर रही है। यह बयान उन्होंने 16 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सैनिक योगदान देशों के प्रमुखों के सम्मेलन (UNTCC 2025) में दिया। डॉ. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि जो संस्थाएं बदलती वास्तविकताओं के अनुसार खुद को ढालने में असमर्थ रहती हैं, वे अप्रासंगिक हो जाती हैं, और सुधार की प्रक्रिया को जानबूझकर बाधित करने से ऐतिहासिक अन्याय जारी रहने का खतरा बढ़ता है।
डॉ. जयशंकर ने भारत की शांति स्थापना की भूमिका पर भी जोर दिया और कहा कि यह नीति भारत की सभ्यतागत परंपराओं पर आधारित है, जिसमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सिद्धांत निहित है। उनका मानना है कि यह दृष्टिकोण भारत को वैश्विक शांति प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। उनका कहना है कि सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना और कार्यप्रणाली वैश्विक वास्तविकताओं को नहीं दर्शाती और विशेष रूप से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे वैश्विक दक्षिण देशों के उचित प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है। उनका सुझाव है कि इन देशों को स्थायी सदस्यता में उचित स्थान मिलना चाहिए।
डॉ. जयशंकर के ये बयान संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार की दिशा में एक स्पष्ट संकेत हैं। उन्होंने वैश्विक संस्थाओं को बदलती वास्तविकताओं के अनुसार ढालने और न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह दृष्टिकोण भारत की विदेश नीति की दिशा और वैश्विक न्याय, समानता और समावेशिता की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।













