चीन पर ट्रम्प की दोहरी चोट — 100% टैरिफ और तकनीकी नियंत्रण लागू होंगे 1 नवंबर से

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने एक बार फिर विश्व बाजारों में हलचल मचा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को घोषणा की कि उनकी सरकार चीन से आने वाले सभी आयातों पर मौजूदा कर दरों के ऊपर 100 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाएगी। यह कदम 1 नवंबर 2025 से प्रभावी होगा, हालांकि उन्होंने यह भी संकेत दिया कि चीन की अगली प्रतिक्रिया के आधार पर यह नीति पहले भी लागू की जा सकती है। राष्ट्रपति ट्रम्प का कहना है कि चीन की नीतियाँ अमेरिकी उद्योग, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं, इसलिए सख्त कदम उठाना ज़रूरी है।

इस घोषणा के साथ ही ट्रम्प प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका अब चीन को “महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर” या “क्रिटिकल टेक्नोलॉजी” के निर्यात पर नए नियंत्रण लगाएगा। इन सॉफ्टवेयरों का उपयोग रक्षा, एयरोस्पेस और उन्नत विनिर्माण क्षेत्रों में होता है। यह कदम अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है जिसके तहत वह चीन की तकनीकी क्षमताओं पर अंकुश लगाना चाहता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ चीन अमेरिका को चुनौती देता दिख रहा है।

दरअसल, यह फैसला चीन के उस कदम के जवाब में आया है जिसमें उसने दुर्लभ पृथ्वी (Rare Earth) और उससे जुड़ी तकनीकी सामग्रियों पर कड़े निर्यात नियंत्रण लगाए हैं। चीन ने हाल ही में 12 दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और उनसे संबंधित प्रसंस्करण उपकरणों को “निर्यात प्रतिबंध” सूची में शामिल कर दिया है। इन तत्वों का उपयोग सेमीकंडक्टर, बैटरी, रक्षा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में किया जाता है। चीन के पास विश्व की लगभग 90% रेयर अर्थ प्रोसेसिंग क्षमता है, जिससे इन संसाधनों पर उसका एकाधिकार है। नई नीति के तहत चीन अब यह तय करेगा कि कौन-सा देश इन संसाधनों को किस उद्देश्य से उपयोग करेगा, और अगर किसी देश की परियोजना चीन के हितों के विरुद्ध मानी गई, तो उसे निर्यात लाइसेंस नहीं दिया जाएगा।

अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, चीन का यह कदम न केवल अमेरिका बल्कि वैश्विक औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखला के लिए खतरा है। दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की कमी से इलेक्ट्रॉनिक और रक्षा उद्योगों पर बड़ा असर पड़ सकता है। अमेरिका ने चेतावनी दी है कि यदि बीजिंग अपने इन नियंत्रणों को वापस नहीं लेता, तो यह वैश्विक व्यापार प्रणाली के लिए नुकसानदायक साबित होगा। ट्रम्प ने कहा कि उनका नया टैरिफ चीन को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा।

अमेरिका के इस निर्णय का असर बाजारों में तुरंत दिखाई दिया। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और एशियाई बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। निवेशक अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगर यह विवाद लंबा खिंचता है तो वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ेगा। विश्लेषकों का मानना है कि यदि चीन भी प्रतिशोधी कदम उठाता है तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी। इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र पर इसका असर पहले से अनुमानित है। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां पहले ही चीन से अपनी निर्भरता कम करने और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश में जुटी हैं।

यूरोप और अमेरिका के उद्योग जगत में भी चिंता बढ़ गई है। कई ऑटोमोबाइल पार्ट निर्माता और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों ने चेतावनी दी है कि यदि दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की आपूर्ति में रुकावट आती है तो उत्पादन ठप पड़ सकता है। कुछ यूरोपीय कारखानों में उत्पादन अस्थायी रूप से रोक दिया गया है क्योंकि उन्हें आवश्यक सामग्री समय पर नहीं मिल पा रही। पहले से ही रेयर अर्थ मैग्नेट की कीमतें बढ़ चुकी हैं, जिससे उत्पादों की लागत बढ़ने लगी है।

इस निर्णय का राजनीतिक असर भी कम नहीं है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने संकेत दिया है कि वह अब एशिया यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होने वाली प्रस्तावित मुलाकात पर पुनर्विचार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि चीन की मौजूदा नीतियाँ “अनुचित और शत्रुतापूर्ण” हैं और अमेरिका ऐसे माहौल में कोई बैठक नहीं करना चाहता। ट्रम्प प्रशासन के करीबी सूत्रों का कहना है कि चीन के खिलाफ यह नीति “अमेरिकी हितों की रक्षा” के लिए आवश्यक है।

चीन ने अभी तक इस पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सरकारी मीडिया ने इसे “राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित आर्थिक दबाव” बताया है। चीन के कुछ आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा है कि बीजिंग को भी अमेरिकी उत्पादों पर नए शुल्क या प्रतिबंध लगाने की तैयारी करनी चाहिए। रिपोर्टों के अनुसार, चीन पहले ही कुछ अमेरिकी तकनीकी कंपनियों पर निगरानी और एंटीट्रस्ट जांच शुरू कर चुका है।

विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद अब सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक “टेक्नोलॉजिकल कोल्ड वॉर” का रूप ले चुका है। एक ओर अमेरिका चीन को तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोकना चाहता है, वहीं चीन इन दबावों के बावजूद अपनी “स्वदेशी नवाचार नीति” को और मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है।

वैश्विक स्तर पर भी इस विवाद के असर दिखने लगे हैं। कई देश, जो चीन से रेयर अर्थ मेटल्स और टेक्नोलॉजी पर निर्भर हैं, अब अपने स्रोतों को विविध बनाने की दिशा में सोच रहे हैं। भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देश इन धातुओं के उत्पादन और प्रसंस्करण में निवेश बढ़ा सकते हैं। इससे भविष्य में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की पुनर्संरचना संभव है।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिका के 100% टैरिफ से उपभोक्ताओं और निर्माताओं दोनों पर असर पड़ेगा। आयात वस्तुएँ महंगी होंगी और उत्पाद लागत बढ़ेगी, जिससे मुद्रास्फीति पर दबाव बनेगा। कंपनियों को या तो उच्च लागत वहन करनी होगी या उत्पादन कम करना पड़ेगा। इससे आर्थिक वृद्धि दर प्रभावित हो सकती है।

हालाँकि, कुछ विशेषज्ञ इसे अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका धीरे-धीरे चीन पर निर्भरता घटाकर अपने घरेलू उत्पादन और मित्र देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देना चाहता है। इसके लिए वह टैरिफ और निर्यात नियंत्रण को एक “रणनीतिक हथियार” के रूप में उपयोग कर रहा है।

वहीं, चीन के लिए भी यह स्थिति आसान नहीं है। रेयर अर्थ पर नियंत्रण से उसे अल्पकालिक लाभ मिल सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह नीति उसके निर्यातकों और विदेशी निवेशकों के लिए जोखिम पैदा करेगी। अगर अन्य देश वैकल्पिक आपूर्ति केंद्र विकसित कर लेते हैं, तो चीन का एकाधिकार घट सकता है।

वर्तमान परिस्थितियों में दोनों देशों के बीच संवाद का रास्ता कठिन दिख रहा है। अमेरिकी और चीनी बयानबाजी दोनों ही कठोर हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अंततः किसी स्तर पर बातचीत की गुंजाइश बनी रहेगी क्योंकि इस व्यापारिक टकराव का नुकसान दोनों अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक व्यापार प्रणाली को झेलना पड़ेगा।

फिलहाल, दुनिया की नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि नवंबर से पहले चीन क्या जवाबी कदम उठाता है और क्या अमेरिका अपनी नीति में कुछ लचीलापन दिखाता है। लेकिन इतना तय है कि यह “ट्रेड वॉर 2.0” सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि तकनीकी और सामरिक शक्ति संतुलन की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है।

Leave a Comment

और पढ़ें