भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग लगातार गहराता जा रहा है। हाल ही में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक में समुद्री सुरक्षा, रक्षा उत्पादन और तकनीकी सहयोग जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ाने पर सहमति बनी। बैठक का मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सामरिक संतुलन बनाए रखना है। इसी दिशा में दोनों देशों ने पानी के नीचे चलने वाली तकनीकों — यानी ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल्स (AUV) और सब-सर्फेस ड्रोन — के विकास और संयुक्त अनुसंधान पर काम करने का निर्णय लिया है। इस पहल से समुद्री निगरानी, पनडुब्बियों की गतिविधियों की पहचान और आपात स्थिति में बचाव-कार्रवाइयों की क्षमता को और मजबूत किया जाएगा।
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अंडरसी सर्विलांस सिस्टम को लेकर भी संयुक्त प्रौद्योगिकी और औद्योगिक सहयोग बढ़ाने की घोषणा की है। दोनों देशों के रक्षा अनुसंधान संगठन अब अंडरवाटर कम्युनिकेशन और डोमेन अवेयरनेस पर संयुक्त रूप से काम करेंगे, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी क्षमता और पारदर्शिता बढ़ेगी। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया-भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग परियोजनाओं के तहत इस दिशा में पहले से चल रहे प्रयासों को भी गति दी जाएगी।
बैठक में रक्षा उत्पादन और रक्षा उद्योग सहयोग को लेकर भी कई अहम प्रस्तावों पर सहमति बनी। भारत ने अपनी उन्नत विनिर्माण और सॉफ्टवेयर क्षमताओं को ऑस्ट्रेलिया की नवाचार और अनुसंधान शक्ति के साथ जोड़ने की बात कही। इससे संयुक्त उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और रक्षा उपकरणों के निर्माण में दोनों देशों को लाभ होगा। भारत ने यह भी सुझाव दिया कि ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के जहाजों की मरम्मत और रखरखाव के लिए भारतीय शिपयार्ड और मरम्मत सुविधाओं का उपयोग किया जा सकता है, जिससे हिंद महासागर में लॉजिस्टिक सपोर्ट के विकल्प मजबूत होंगे।
दोनों देशों ने समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सूचना साझा करने और खुफिया तालमेल को बढ़ाने पर भी सहमति जताई। इससे समुद्री गतिविधियों में पारदर्शिता बढ़ेगी और आपात स्थितियों में दोनों नौसेनाओं की प्रतिक्रिया क्षमता तेज होगी। यह पहल न केवल द्विपक्षीय सहयोग को गहरा करेगी बल्कि क्वाड देशों — भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया — के सामरिक तालमेल को भी मजबूत करेगी। इसके अलावा, दोनों देशों ने एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग, सबमरीन रेस्क्यू और अन्य आपरेशनल पहलुओं को और प्रभावी बनाने के लिए भी चर्चा की।
रक्षा उद्योग से जुड़े आयोजनों और व्यापार मिशनों को लेकर भी नए अवसर सामने आए हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की पहली रक्षा ट्रेड मिशन और भारत पवेलियन की भागीदारी जैसी पहलें इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही हैं। इसके तहत दोनों देशों की कंपनियाँ संयुक्त अनुसंधान, विनिर्माण साझेदारी और आपूर्ति-श्रृंखला के एकीकरण पर काम करेंगी। इससे निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के उद्योगों को बड़े अनुबंधों और निवेश अवसरों का लाभ मिलेगा।
रणनीतिक दृष्टि से यह सहयोग केवल तकनीकी साझेदारी नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है। पानी के नीचे निगरानी प्रणाली और अंडरवाटर प्लेटफ़ॉर्म की उन्नत क्षमताएँ संवेदनशील समुद्री गलियारों में सुरक्षा कवच प्रदान करेंगी। वहीं, रक्षा उत्पादन में साझेदारी से दोनों देशों को आत्मनिर्भरता और आपूर्ति सुरक्षा में मजबूती मिलेगी।
आगे की योजना के तहत भारत और ऑस्ट्रेलिया ने तय किया है कि आने वाले महीनों में संयुक्त तकनीकी रोडमैप तैयार किया जाएगा। अगले वर्ष के भीतर विभिन्न कार्य-समूह और राउंडटेबल मीटिंग्स के माध्यम से इन परियोजनाओं को लागू किया जाएगा। सिडनी में प्रस्तावित रक्षा-इंडस्ट्री राउंडटेबल इस दिशा में एक अहम मंच साबित होगा, जहाँ दोनों देश तकनीकी विवरणों और साझेदारी के अगले चरणों को अंतिम रूप देंगे।
