भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा होते ही राजनीतिक पटल पर एक नया नारा पेश किया है — “25 से 30, हमारे दो भाई नरेंद्र और नीतीश”। इस नारे से पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि आगामी पाँच वर्षों (2025-2030) के लिए सत्ता की बागडोर नरेंद्र मोदी-नीतीश कुमार की साझेदारी के हाथों में बनी रहेगी, और एनडीए उसी रूप में बिहार में चुनावी ताल ठोक रही है।
निर्वाचन आयोग ने तय किया है कि बिहार में मतदान दो चरणों में संपन्न होगा — पहला चरण 6 नवम्बर को, दूसरा 11 नवम्बर को — और मतगणना तथा परिणामों की घोषणा 14 नवम्बर को होगी। चुनावी घोषणा के तुरंत बाद भाजपा के प्रदेश नेता एवं उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने उक्त नारा सोशल मीडिया तथा जनसभा-प्रचार में जोरशोर से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
विपक्षी दलों ने भाजपा के इस नए नाराबाज़ी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सहित महागठबंधन के अन्य दलों ने नारे की व्याख्या और पार्टी के दावों की परीक्षा-पड़ताल शुरू कर दी है। उनका कहना है कि नरेंद्र-नीतीश का जोड़ और “25 से 30” की पारी सिर्फ प्रतीकात्मक हो सकती है यदि स्थानीय मुद्दों — जैसे रोज़गार, सड़क-पानी, बिजली की समस्या — पर जनता को पर्याप्त भरोसा न हो।
इस चुनावी प्रक्रिया में मतदाताओं की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्व रखती है क्योंकि इस बार लगभग 7.43 करोड़ मतदाता रजिस्टर किए गए हैं, जिनमें करीब 14-लाख नए मतदाता शामिल हैं। इस वजह से राजनीतिक दलों ने नौजवानों और नए मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी चुनावी रणनीतियाँ और संचार-योजनाएँ सघन कर ली हैं। पोस्टर-रैली, सोशल मीडिया अभियान, कट-अँ-पोस्टर प्रचार, मधुर नारों-गान आदि का दौर तेज़ है।
राजनीतिक विश्लेषक इस नारे को सिर्फ एक प्रचारात्मक नाराबाज़ी नहीं मानते, बल्कि इसे भाजपा की रणनीति के हिस्से के रूप में देखते हैं — जिसमें नेतृत्व-छवि, गठबंधन-स्थिरता और भावनात्मक जुड़ाव का महत्व है। अब देखना यह है कि “25 से 30, हमारे दो भाई नरेंद्र और नीतीश” का यह नारा मतदाताओं के बीच कितनी पकड़े करता है, और चुनाव में स्थानीय समस्याएँ व उम्मीदवारों की विश्वसनीयता कितनी निर्णायक भूमिका निभाती है।
