इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चार मेडिकल कॉलेजों में लागू किए गए 79 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को अवैध करार दिया है। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह आरक्षण से जुड़ी व्यवस्थाएं केवल आरक्षण अधिनियम, 2006 और संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही लागू करे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों की सीटों को अब कानून के अनुसार दोबारा भरा जाए।
यह आदेश सबरा अहमद नामक एक उम्मीदवार की याचिका पर आया। याचिका में कहा गया था कि अम्बेडकरनगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर मेडिकल कॉलेजों में जारी सरकारी आदेशों के कारण कुल 340 सीटों में से सिर्फ 28 सीटें ही अनारक्षित वर्ग (जनरल कैटेगरी) के लिए बचीं, जबकि शेष सीटें अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गईं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह कदम संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में तय की गई 50% सीमा का उल्लंघन करता है।
अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सही मानते हुए सरकार के आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरक्षण बढ़ाने का अधिकार राज्य के पास है, लेकिन ऐसा केवल कानूनी प्रावधानों और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही किया जा सकता है। बिना वैधानिक आधार के आरक्षण की सीमा 50% से अधिक करना असंवैधानिक माना जाएगा।
राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ विशेष अपील दायर की है और तर्क दिया है कि कुछ परिस्थितियों में 50% सीमा को पार किया जा सकता है। हालांकि, अदालत का कहना है कि इसके लिए वैधानिक और ठोस आधार प्रस्तुत करना जरूरी है।
इस फैसले का सीधा असर संबंधित चारों मेडिकल कॉलेजों की प्रवेश प्रक्रिया पर पड़ेगा। अब उन सीटों का पुनर्वितरण होगा जिन्हें पहले अतिरिक्त आरक्षण के तहत भरने की योजना थी। इसका लाभ उन छात्रों को मिल सकता है जो सामान्य वर्ग में सीमित सीटों के कारण बाहर हो रहे थे।
संक्षेप में, हाईकोर्ट ने साफ किया है कि आरक्षण की नीति न्यायसंगत और संवैधानिक सीमा में होनी चाहिए। सरकार से उम्मीद है कि वह अधिनियम और न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए आगे की प्रक्रिया तय करेगी।
