केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि भारत उन हिंदू शरणार्थियों का स्वागत करेगा जो पड़ोसी देशों — खासकर पाकिस्तान और बांग्लादेश — में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर चुके हैं और भारत में शरण लेने आए हैं। शाह ने कहा कि भारत हमेशा से मानवता के सिद्धांतों पर खड़ा रहा है, और जो लोग अपने धर्म, जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए यहां शरण लेते हैं, उन्हें संरक्षण और सम्मान मिलना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे लोगों को “शरणार्थी” माना जाएगा, जबकि जो लोग बिना किसी उत्पीड़न के केवल आर्थिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते हैं, उन्हें “घुसपैठिया” कहा जाएगा, और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
अमित शाह ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि सरकार शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच साफ़ भेद करती है। उन्होंने कहा कि धार्मिक उत्पीड़न से भागकर आने वालों को नागरिकता देने की प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी ढंग से पूरी की जा रही है, लेकिन जो लोग अवैध रूप से सीमाएँ पार कर भारत की जनसंख्या और सामाजिक संतुलन को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं, उनके प्रति सरकार की नीति शून्य सहिष्णुता की होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि भारत “कोई धर्मशाला नहीं” है कि कोई भी व्यक्ति बिना नियमों के आकर बस जाए।
शाह ने कहा कि केंद्र सरकार की नीति “Detect, Delete and Deport” यानी पहचानना, अवैध प्रविष्टियों को हटाना और ऐसे लोगों को वापस भेजना है जो कानून का उल्लंघन कर देश में रह रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन देश की सुरक्षा, संस्कृति और समाज की संरचना के लिए गंभीर चुनौती हैं। इसीलिए गृह मंत्रालय सीमाओं की निगरानी को मजबूत कर रहा है, और राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऐसे लोगों की पहचान की जा रही है जो फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे रह रहे हैं।
अपने संबोधन में शाह ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत ने उन लोगों से एक वादा किया था जो विभाजन के समय धार्मिक कारणों से अपने देश छोड़ने को मजबूर हुए थे। आज केंद्र सरकार उस ऐतिहासिक वादे को निभा रही है ताकि ऐसे लोगों को न्याय और नागरिकता मिल सके। उन्होंने कहा कि नागरिकता देना किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए है जो दशकों से बिना अधिकार के जी रहे हैं।
गृह मंत्री ने अवैध घुसपैठ को राजनीतिक संरक्षण देने की प्रवृत्ति पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं जो देश की सीमा पार कर अवैध रूप से प्रवेश करते हैं। शाह ने कहा कि यह प्रवृत्ति न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करती है। उन्होंने चेतावनी दी कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर किसी भी दबाव या राजनीतिक लाभ के आगे नहीं झुकेगी।
शाह ने यह भी बताया कि सरकार ने बॉर्डर इलाकों में सुरक्षा व्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए कई नए कदम उठाए हैं। सीमा सुरक्षा बल (BSF) को आधुनिक तकनीक से लैस किया गया है और इंटेलिजेंस नेटवर्क को भी सशक्त किया गया है ताकि सीमाओं के पार होने वाली किसी भी अवैध गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई की जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता सिर्फ सुरक्षा नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन बनाए रखना भी है।
गृह मंत्री के इस बयान के राजनीतिक मायने भी गहरे हैं। उनके बयान से यह संदेश गया कि मोदी सरकार धार्मिक उत्पीड़न झेलने वाले अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशील है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जाएगी। यह बयान विपक्ष के उन आरोपों का जवाब भी माना जा रहा है जिनमें कहा गया था कि सरकार नागरिकता कानून के ज़रिये एक समुदाय को वरीयता दे रही है। शाह ने स्पष्ट कहा कि भारत में हर किसी को समान अवसर और न्याय मिलेगा, लेकिन जो लोग अवैध रूप से प्रवेश करेंगे, उनके लिए कानून सख्त है।
नीति विशेषज्ञों का मानना है कि शाह का यह रुख आने वाले समय में भारत की इमीग्रेशन नीति को और स्पष्ट दिशा देगा। सरकार शरणार्थियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए भी कानूनी प्रक्रियाओं पर जोर दे रही है ताकि देश की सुरक्षा, जनसंख्या संतुलन और सांस्कृतिक संरचना सुरक्षित रह सके। इस दिशा में गृह मंत्रालय ने कई नई योजनाओं पर काम शुरू किया है जिनमें डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करना, फर्जी पहचान पत्रों की जांच और सीमा निगरानी में तकनीकी सुधार प्रमुख हैं।
अमित शाह के इस बयान से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि केंद्र सरकार आने वाले समय में शरणार्थियों के अधिकार और अवैध घुसपैठ पर नियंत्रण — दोनों पर समान रूप से ध्यान देगी। एक ओर भारत मानवता और करुणा की भूमि बना रहेगा, वहीं दूसरी ओर उसकी सीमाएँ और कानून उतने ही सख्त रहेंगे जितने एक संप्रभु राष्ट्र के लिए आवश्यक हैं। शाह के इस रुख से सरकार का संदेश साफ़ है — भारत में उत्पीड़ितों को शरण मिलेगी, लेकिन कानून का उल्लंघन करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
