सीरिया इन दिनों ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है, क्योंकि देश में असद शासन के पतन के बाद पहली बार संसदीय चुनाव आयोजित किए जा रहे हैं। यह चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि यह लंबे समय से चले आ रहे एकदलीय शासन और संघर्षों के बाद नई राजनीतिक दिशा तय करने वाला पहला बड़ा लोकतांत्रिक अभ्यास माना जा रहा है। हालांकि इस बार की चुनावी प्रक्रिया पारंपरिक प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के बजाय अप्रत्यक्ष चुनाव पद्धति पर आधारित है। लगभग 6,000 नामित प्रतिनिधि मिलकर 210 में से करीब 140 सीटों के लिए मतदान करेंगे, जबकि बाकी एक-तिहाई सीटों पर राष्ट्रपति अहमद अल-शराआ स्वयं नियुक्तियाँ करेंगे। संक्रमणकालीन संविधान के तहत बनाई गई इस व्यवस्था का उद्देश्य प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखते हुए नई संसद का गठन करना बताया जा रहा है।
चुनाव आयोग और प्रशासन का कहना है कि प्रत्यक्ष मतदान से बचने का निर्णय सुरक्षा, विस्थापन और जनसांख्यिकीय अस्थिरता को देखते हुए लिया गया है, क्योंकि युद्ध और अस्थिरता के कारण कई इलाकों में मतदाता सूची और पहचान संबंधी दस्तावेजों का अभाव है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इस प्रक्रिया को सीमित लोकतंत्र और सत्ता के केंद्रीकरण की दिशा में एक कदम मान रहे हैं। दमिश्क और अन्य प्रमुख शहरों में चुनाव प्रचार शांत रहा, और कई नागरिकों को मतदान प्रक्रिया और उम्मीदवारों की जानकारी भी सीमित रूप से ही उपलब्ध थी। इससे यह स्पष्ट झलकता है कि आम जनता में राजनीतिक भागीदारी को लेकर अभी भी भरोसा और उत्साह की कमी है।
चुनाव में महिलाओं और अल्पसंख्यकों की भागीदारी पर भी निगाहें टिकी हैं। कई क्षेत्रों, खासकर कुर्द और द्रूज़ बहुल इलाकों में मतदान आयोजित नहीं किया जा सका, जिससे प्रतिनिधित्व में असमानता की आशंका बढ़ गई है। आलोचक कहते हैं कि यदि राष्ट्रपति की नियुक्तियाँ भी पूर्व सत्ता तंत्र के लोगों के पक्ष में जाती हैं तो जनता का भरोसा बहाल करना कठिन होगा। वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया सीरिया के लिए राजनीतिक स्थिरता और नई शुरुआत की दिशा में एक संक्रमणकालीन कदम हो सकती है, बशर्ते आगे चलकर इसे अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाया जाए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस चुनाव को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। पश्चिमी देशों और मानवाधिकार संगठनों ने पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, जबकि कुछ अरब देशों ने इसे ‘आंतरिक सुधार की दिशा में पहला कदम’ बताया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि नई संसद और संक्रमणकालीन सरकार किस तरह संवैधानिक सुधार, सत्ता-वितरण और विदेशी नीति जैसे अहम मुद्दों को संभालती है। यह संसदीय चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सीरिया के भविष्य की दिशा तय करने वाला निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
