कश्मीरी पंडितों की आस्था का केंद्र शारदा भवानी मंदिर 30 साल बाद फिर खोला गया

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बडगाम (जम्मू-कश्मीर): कश्मीर घाटी में सदियों पुरानी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को फिर से जीवंत करने वाला ऐतिहासिक पल रविवार को बडगाम जिले के इचकूट गांव में देखने को मिला। यहां तीन दशकों बाद शारदा भवानी (शारदा माता) मंदिर के द्वार फिर से श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए।

पूजा-अर्चना और प्राण प्रतिष्ठा

मंदिर के पुनः उद्घाटन अवसर पर भव्य धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुए। पुजारियों और कश्मीरी पंडित परिवारों ने पारंपरिक वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। सुबह से ही मंदिर परिसर में भक्तिमय माहौल रहा और पंडित परिवारों ने लंबे समय बाद अपने पैतृक स्थल पर आकर पूजा-अर्चना की। कई परिवारों की आंखें नम हो गईं जब वर्षों बाद उन्होंने अपने देवीस्थान में दीप जलाया।

स्थानीय मुस्लिमों की भागीदारी

इस समारोह की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि बड़ी संख्या में स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग भी कार्यक्रम में मौजूद रहे। उन्होंने आयोजन में सहयोग किया और पंडित परिवारों का स्वागत किया। कई स्थानीय मुस्लिम नागरिकों ने सार्वजनिक रूप से कहा कि “कश्मीर घाटी पंडितों की जन्मभूमि है, यहां सभी को साथ मिलकर रहना चाहिए।” यह संदेश पूरे आयोजन को और भी भावनात्मक बना गया।

ऐतिहासिक महत्व

शारदा भवानी मंदिर का कश्मीर में विशेष धार्मिक महत्व है। 1990 के दशक की अशांति और आतंकवाद की लहर के बाद यह मंदिर बंद हो गया था। उस दौर में घाटी से हजारों कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए थे। अब तीन दशक बाद मंदिर का पुनः खुलना घाटी में आपसी मेलजोल और सांस्कृतिक पुनर्जीवन का प्रतीक माना जा रहा है।

प्रतिक्रियाएँ और उम्मीदें

समारोह के बाद आयोजकों ने कहा कि आने वाले समय में मंदिर में नियमित पूजा-पाठ और वार्षिक उत्सवों का आयोजन किया जाएगा ताकि कश्मीरी पंडित समुदाय की आस्था और परंपराओं को संरक्षित किया जा सके। स्थानीय मुस्लिमों ने भी विश्वास दिलाया कि वे हर संभव सहयोग करेंगे।

समापन

शारदा भवानी मंदिर का पुनः खुलना केवल एक धार्मिक घटना नहीं बल्कि कश्मीर के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को जोड़ने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। तीन दशकों के इंतजार के बाद यह पहल घाटी में एक नई आशा और भाईचारे का संदेश लेकर आई है।

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